479/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
सेवा जननी तात की,और न गुरु की भूल।
इनकी सेवा में छिपा, सर्व सफलता मूल।।
सर्व सफलता मूल,यही जीवन - निर्माता।
होता है उद्धार,इन्हें जो नित प्रति ध्याता।।
'शुभम्' यही हैं ईश,सुलभ हो जन को मेवा।
करे न कोई भूल, पिता,माता, गुरु - सेवा ।।
-2-
रहते बैठे आलसी, रखे हाथ पर हाथ।
बैठे तन को सेंकते,झुका न सकते माथ।।
झुका न सकते माथ, पूर्ण कर्तव्य न करते।
अजगर से ले सीख,पड़े उदरों को भरते ।।
'शुभम्' करें वे भूल,कष्ट आजीवन सहते।
सभी आलसी लोग ,जगत में यों ही रहते।।
-3-
करते श्रम से कर्म जो,होती भी हैं भूल।
स्वयं सुधारें शीघ्र ही,उनको मित्र समूल।।
उनको मित्र समूल,कर्म से विरत न होना।
सदा खेत में बीज,सुघर जिंसों के बोना।।
'शुभम्' भूल से सीख,राह में जो जन चलते।
सदा सफलता -मंत्र,वही जन जाना करते।।
-4-
लेना शिक्षा भूल से, शिक्षक भी है भूल।
सावधान करती सदा,पथ में कहाँ बबूल।।
पथ में कहाँ बबूल,शूल से बचकर चलना।
संघर्षों के बीच,पड़ें फिर हाथ न मलना।।
'शुभम्' खोलकर आँख, निरंतर नैया खेना।
भ्रमरों से उद्धार,पार सरिता कर लेना।।
-5-
मानव - जीवन में नए, आते बड़े पड़ाव।
हो जाती हैं भूल भी,डगमग हिलती नाव।।
डगमग हिलती नाव,धैर्य से आगे बढ़ना।
मानें गुरु सम भूल,पाठ शिक्षा का पढ़ना।
'शुभम्' न त्यागें धर्म,नहीं बनना है दानव।
कर्मठ बनिए नित्य,सफल हो जीवन-मानव।।
●शुभमस्तु !
03.11.2023◆7.45आ०मा०
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