495/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कभी न करना हृदय मलीन।
नहीं बनेगा जीवन दीन।।
जीवन में वे दुःखी सदा,
भरते उदर किसी से छीन।
निज कर्मों पर कर विश्वास,
ईश - भक्ति में रहना लीन।
दुर्बल को खाता बलवान,
ज्यों छोटी को तगड़ी मीन।
निष्ठावान कर्म में नित्य,
सदा बजाते सुख की बीन।
भारत माँ की अपनी शान,
हमें न बनना पाकी चीन।
'शुभम्' मातरम वंदे गीत,
गाए जनगण रँग में तीन।
●शुभमस्तु !
20.11.2023◆7.30आ०मा०
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