492/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
आपाधापी देश में, दिखती चारों ओर।
नेताओं में देशहित , कहाँ छिपा किस छोर।।
कहाँ छिपा किस छोर,चूसते जनता सारी।
नारों की बस रोर, परिग्रह की बीमारी।।
'शुभम्' उठाई पूँछ, आदि से पूरी नापी।
ताने झूठी मूँछ, मचाए आपाधापी।।
-2-
आपाधापी में जुटा, जन-जन देखो आज।
झूठी शान बघारता, धर पीतल का ताज।।
धर पीतल का ताज, खोखली बातें करता।
जनहित की कर बात,उदर हित जीता - मरता।।
'शुभम्' वचन में भक्त,हृदय से कपटी पापी।
परधन में अनुरक्त, मचाता आपाधापी।।
-3-
आपाधापी से नहीं , सरे तुम्हारा काम।
खुलता है जब भेद तो, होता काम तमाम।।
होता काम तमाम, जगत में हो बदनामी।
रहे न कौड़ी दाम, दिखें सद्गुण भी ख़ामी।।
'शुभम्' न बगुला भक्त,हुआ कब सच्चा जापी।
कामुकता - आसक्त, सदा रत आपाधापी।।
-4-
आपाधापी से नहीं, जीवन हो अनुकूल।
परिश्रम ही फलता सदा,जहाँ मनुज का मूल।।
जहाँ मनुज का मूल,समय का पालन करना।
करें न इसमें भूल, सुगमता से सरि तरना।।
'शुभम्' सत्य का साथ,त्याग मत बनकर पापी।
विनत बड़ों को माथ, करे मत आपाधापी।।
-5-
आपाधापी जो करे, जीवन वह धिक्कार।
भेद खुले जब मूल का,देते सब दुत्कार।।
देते सब दुत्कार, मान मिट्टी में मिलता।
मिलती है बस हार,सुमन पाटल क्यों खिलता??
'शुभम्' एक सिद्धांत, मान चल बने न पापी।
मन को रखना शांत, उचित क्या आपाधापी??
●शुभमस्तु !
17.11.2023◆ 10.00आरोहणम मार्तण्डस्य।
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