रविवार, 12 नवंबर 2023

हरी चूड़ियाँ ● [ गीत ]

 483/2023

   

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● © शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हरी चूड़ियाँ

भरीं कलाई

मुख पर हर्ष अपार बड़ा।


मोती जैसे

दाँत चमकते

अपने   में   संतुष्ट  सदा।

भले गरीबी

आने देती

मुख पर वह वेदना कदा??


फैलाती कब

हाथ किसी के

सम्मुख वह धर धैर्य कड़ा।


लिए अंक में

नन्हा बालक 

ज्यों वह खिलता पाटल हो।

हर अभाव में

खुश रह बाला

बहता ज्यों गंगा जल हो।।


कोई कुछ भी

कहे न सुनती

स्वयं उठाती भरा घड़ा।


कठिन परीक्षा 

जीवन लेता

किन्तु न नारी घबराती।

सदा अभावों 

में जीती है

स्मिति कभी न मर पाती।।


अबला कहती 

उसको दुनिया

'शुभम्' हृदय उसका तगड़ा।


● शुभमस्तु !


07.11.2023◆7.30आ०मा०

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