शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

धैर्य ● [ सोरठा ]

 501/2023

                     

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जब हो विपदा  काल, धैर्य नहीं निज खोइए।

फैलाती  निज जाल,अनुचित सदा अधीरता।।

संतति   पाले   कोख, धैर्य धरे जननी   सदा।

तब मिलता शुभ मोख,झेले नौ-नौ मास वह।।


वही   परीक्षा - काल, आती  है जब  आपदा।

संतति हो तब   ढाल, धैर्य, धर्म, नारी,  सखा।।

छोटे -  बड़े    पड़ाव,   जीवन  में  आते   सदा।

डूब   न   पाती  नाव,  धैर्य  बँधाते मित्रगण।।


होता  लाल  निराश, माँ के आँचल में   छिपा।

छोड़  न   बेटे  आश,धैर्य   बँधाती अंक  ले।।

उचित न बहुत अधीर,उचित न अति का धैर्य भी।

अति का भला न नीर,अति की भली न  धूप है।।


प्रथम  धैर्य  को  जान,दस लक्षण हैं   धर्म  के।

अन्य पाँच भी मान, क्षमा,शौच, धी, सत्य  सह।।

जब  असार    संसार ,   जाता कोई   छोड़कर।

करके  बुद्धि - विचार,विवश सभी  हैं  धैर्य  को।।


प्रथम  सबल   पहचान, धर्मीजन का  धैर्य   ही।

करते जन गुणगान,निज  पथ से विचलित नहीं।।

मानव   की  सत  राह, असफलताएँ   रोकतीं।

मिटा   पंथ    की  दाह,  वहाँ धैर्य बल   सौंपता।।


रुकें   न   पल को   एक,  देता धैर्य जबाव  जो।

त्याग न 'शुभम्'विवेक,सत पथ पर चलते  रहें।।


●शुभमस्तु !


23.11.2023● 9.00आरोहणम्

मार्तण्डस्य।

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