गुरुवार, 2 नवंबर 2023

निःशुल्क ● [ अकविता ]

 477/2023

             

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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प्रसन्नता   की  बात है,

 ये समझ लें खैरात है,

बरसात ही बरसात है,

आखिर तो सबका तात है।


अब गैस  भी  तो मुफ़्त है,

आया है अब तो लुत्फ़ है,

सेंको   मजे   से   रोटियाँ,

छू लो हिमाचल चोटियाँ।



हर माह   माला  नोट की,

समझें न इसको वोट की,

अन्न   चावल   दाल   की,

क्या बात मुफ़्ती माल की!



उज्ज्वल बना है  आज ये,

सिर पर सजा   है ताज ये,

करना   हमें   है  नाज़ भी,

शीतल सुलगती आग भी।


इस हाथ से लें प्यार से,

लौटाओगे फिर मार से,

लगते हैं  अपने यार से,

बरवादी  के आसार से।


कर्तव्य उनका   है यही,

जो पा रहे हो मुफ्त की,

वर्षा   हुई   आनंद   की,

अति 'प्रेमगंगा'  है  बही।


आज जो   बरसी कृपा,

हर आदमी   उसमें नपा,

जब जाएगी ये लौटकर,

दिखलाई देगा मौतघर।


ये  दान    तो   कर्तव्य  है,

लगता  बड़ा  ही  भव्य है,

छीनना      सद्धर्म      भी,

समझें सियासत-मर्म भी।


तुमको 'शुभम्' क्या खोलकर,

कह दें  अभी  सब   बोलकर?

कुछ  सोच  लो दृग पोंछ लो,

मत खम्भ    घर का नोंच लो।


● शुभमस्तु !


02.11.2023◆6.30प०मा०

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