बुधवार, 22 नवंबर 2023

गिल्ली डंडा कंचा भूले ● [ बाल कविता ]

 498/2023

  

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●© शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

गिल्ली - डंडा    कंचा   भूले।

नहीं  रहे  सावन   के   झूले।।


कहाँ  कबड्डी   खेले    कोई ।

कंकरीट  की   सड़कें   बोई।।


ऊँची  कूद   न  लंबा    कूदें।

कुश्ती  देख  आँख वे   मूँदें।।


खेलें   नौ  न अठारह   गोटी।

गई  मूँड़  से    लंबी    चोटी।।


कंकड़ - खेल  नहीं  वे जानें।

मोबाइल पर   अँगुली  तानें।।


नहीं नाव  कागज़  की चलती।

उन खेलों की कमियाँ खलती।।


 अब  का बचपन पचपन जैसा।

नहीं  खेल अब  कल  के जैसा।।


'शुभम्' खेल  वे  पिछली  बातें।

मोबाइल   की    चलती    घातें।।


● शुभमस्तु !


21.11.2023●5.45पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...