शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

लपेटा लपटों का ● [व्यंग्य ]

503/2023 

 लपेटा लपटों का ● 

 [व्यंग्य ] 

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 ● © व्यंग्यकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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 लपट का कोई सुनिश्चित आकार नहीं होता।वह तो पतली, मोटी, आड़ी,तिरछी,छोटी, बड़ी,खड़ी, पड़ी आदि कैसी भी हो सकती है। बस वह शीतल नहीं होती। जब होगी, तो गर्म ही होगी। हर लपट एक दूसरी से भिन्न आकार - प्रकार की ही बनती है।लिपटना या किसी को अपने साथ लपेटना ही उसका काम है।जब लप - लप करती हुई लपट की झपट आगे बढ़ती है तो किसी न किसी को , कुछ न कुछ को लपेटने के लिए ही उठती है।वह कब किसे और क्यों अपने झपेटे में ले लेगी ,कुछ नहीं कहा जा सकता।

 प्रायः यह भी अनुभव किया गया है कि कोई भी लपट ऊपर से नीचे की ओर नहीं, सदैव ही नीचे से ऊपर की ओर ही चलती है,बढ़ती है।यह तो दिखाई देता है कि लपट का उद्गम क्या है?कहाँ है ? किंतु यह पता नहीं चलता कि वह कहाँ जाकर विलुप्त हो जाती है।जब लपट की चपेट में कोई वस्तु आदि आ जाती है तो वह भी अपनी नई लपट को पैदा करने लगती है।अन्यथा अपनी लपक -झपक करते हुए व्यापक शून्य मंडल में विलुप्त हो जाती है। इस प्रकार प्रत्येक लपट की दो ही गतियाँ हैं :पहली यह कि वह किसी को लपेटे में लेकर उसे जलाए और यदि उस वस्तु में यदि जलने और लपट पैदा करने की क्षमता है,तो वैसा वह भीकरे । लपट की दूसरी और अंतिम गति यही है कि ऊपर जाकर अदृश्य हो जाए।पुनः लौट कर न आए। यह तो अच्छा ही है कि लपट पुनः लौटती नहीं और निराकार होने के बाद पुनः साकार नहीं होती।फिर तो वह धूम मचाकर धूम - धूम हो जाती है और हमारी आँखों को बंद करने के लिए ही बाध्य कर देती है।

 लपट की एक अन्य कोटि ऐसी भी है जो बाहर नहीं लगती। नर - नारियों के दिलों में सुलगती है।सुलगते -सुलगते कभी धूम-दर्शन कराती है तो कभी अदृश्य रूप में जलती है।जहाँ जलती है ,उसे उसका बखूबी अनुभव होता है। चाहता तो वह यह है कि वह सामने वाले को जलाकर खाक कर दे ,राख कर दे ;किन्तु इसके विपरीत वह स्वयं ही उसकी अदृश्य लपटों में घिरा हुआ तड़पता रहता है और किसी का एक बाल भी नहीं जला पाता।यही इस लपट की विशेषता है। शायद आप समझ गए होंगे क्योंकि हो न हो यह लपट कभी न कभी आपके दिल में भी जली होगी। यदि नहीं जली ,तो आपकी महानता का यह शुभ संकेत है।इस प्रकार की लपटों के कुछ   सामाजिक,राजनैतिक,धार्मिक, मज़हबी,सरकारी,निजी और विविध विषयक नमूने प्रस्तुत किए देता हूँ। 

 उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सुंदर क्यों ?  उसकी गाड़ी मेरी गाड़ी से महँगी और बढ़िया क्यों?वह तो एक बार की विधायकी में मन्त्री क्यों और कैसे बन गया,मैं तीन बार की विधायकी में भी क्यों नहीं बना? उसका बेटा विदेश में पढ़ता है ,मेरा क्यों नहीं? पड़ौसी बिना कुछ किये ही पेंशन से लाखों पाता है और ऐश करता है और इधर हम रात- दिन एक करके खून - पसीना बहाकर भी ढंग से दाल - रोटी भी नहीं खा पाते? ऐसा क्यों? उनके बेटे की बहू इतनी सुंदर कि देवी लगती है और इधर हमारी बहू कल्लो मसानी चुड़ैल, महा लड़ाका ?उनके भगवान हमारे भगवान से बड़े क्यों? मेरे बॉस वर्मा जी को ज्यादा तवज्जो देते हैं ,मुझे क्यों नहीं ? साला बॉस ही चरित्रहीन लगता है , अपनी सेक्रेटरी को एक मिनट के लिए भी चैंबर से बाहर नहीं जाने देता ? पास ही बिठाए रखता है। उसकी दुकान की ज्यादा बिक्री क्यों होती है,मेरी दुकान की क्यों नहीं ? उसकी पत्नी पिलाजो ,मैक्सी और मोर्डन कपड़े पहनती है ,मेरी तो साड़ी धोती में ही रहती है।जाने कहाँ से इतना पैसा लाते हैं कि एक- एक दिन में पाँच -पाँच बार कपड़े बदलते हैं? अमुक रचनाकार की अब तक दो दर्जन से भी अधिक किताबें प्रकाशित हो गईं और हम अभी एक के भी दर्जी नहीं बन सके? इस प्रकार की लपटों के हजारों लाखों नहीं ,करोड़ों उदाहरण बिना ढूंढ़े ही कदम- कदम पर मिल जाते हैं। क्या कीजिए ये समाज ,ये संसार ही करोड़ों लपटों में घिरा हुआ है। अंतर और अंदर छिपी हुई अग्नि का ही परिणाम ये लपटें हैं ,जो कहीं दृश्य हैं ,कहीं अदृश्य। 

 झोंपड़ी बँगले को देख-देख लपटायमान है।नारी ,नारी को देख झपटायमान है। बाबू,अधिकारी से हलकान है। अधिकारी, मंत्री से डुलायमान है। बनिया, बनिये से दुखायमान है। छात्र किसी दूसरे छात्र के अंकों के ग्राफ से हलकान है। सौत,सौत के प्रेम प्रवाह को देख विरहमान है,कि उसके हिस्से में क्यों पति का कुछ ज्यादा ही झुकान है। और तो और पड़ौसी अपने पड़ौसी से लपटायमान है कि वह चैन से रोटी क्यों खा रहा है? अगला दुखी क्यों नहीं ? परेशान क्यों नहीं है? 

 एक चूहा बिल्ली की सी दौड़ है। बिल्ली चूहे के पीछे है तो कुत्ता बिल्ली के पीछे!बस यही खेल चल रहा है। लगता ही नहीं कि कहीं आदमीपन भी है ! सब एक दूसरे से लपट से लिपटे जले जा रहे हैं।लगने लगा है कि आदमजाद यह आदमी भी मात्र कुत्ता बिल्ली से अधिक कुछ नहीं है। इससे तो गुबरैला बेहतर कि वह अपनी गोबर - गंध में निमग्न है। उसे किसी चूहे बिल्ली कुत्ते सुअर या आदमी से कोई मतलब नहीं है। कम से कम वहाँ आग की लपटें तो नहीं हैं।

 ●शुभमस्तु !

 24.11.2023● 7.00प०मा० 

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