509/2023
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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भूख उदर की सदा सताए।
जंतु भूमि, नभ, जल जन्माए।।
अलग भूख जो जन्मी काया।
जगती में व्यापी नित माया।।
कवि को मानस -भूख सताती।
असमय समय देख कब पाती।।
पकड़ लेखनी लिखता कविता।
नहीं जहाँ पर पहुँचे सविता।।
नेता सब कुरसी के भूखे।
ऊपर चिकने अंदर रूखे।।
सत्तासन की भूख निराली।
मिले रसों की मीठी डाली।।
शिक्षा की शुचि भूख जगाता।
मानव वह शिक्षक कहलाता।।
जो समाज शिक्षा का भूखा।
जीवन जीता कभी न रूखा।।
भूख देह की संतति लाती।
तन मन को उपकृत कर जाती।।
वंश - वृद्धि के गाछ उगाए।
भूख देह की क्या न कराए??
विविध भूख के रूप बनाए।
बनते हैं मानव के साए।।
बिना भूख क्या जीवन कोई!
भूखी देह न सुख से सोई।।
भूखा रहे न भू पर कोई।
आँख न कोई दुख से रोई।।
'शुभम्' चलें हम भूख मिटाएँ।
भूखे मनुज नहीं सो पाएँ।।
●शुभमस्तु !
27.11.2023●12.30प०मा०
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