485/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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'बड़ों' के बताए
मार्ग पर चलना,
यह 'बड़े लोग'
बतलाते हैं,
और उनसे 'छोटे'
सभी जन
उसी पथ पर
चलते चले जाते हैं।
'परान्नभोजिता' का
संस्कार दिया जा रहा है,
'पवित्र अभियान' के द्वारा
उसे औचित्यपूर्ण
बनाया जा रहा है,
ताकि
'ज्योतिर्मा तमसो गमय'
को उचित ठाहराया जा सके,
पुनः - पुनः देश को
दासनुदास बनाया जा सके।
सबको पता है,
मुझे अब
क्या कुछ बताना?
कि कैसे
'मधुवत जहर '
अमृत बताया जा रहा है,
बनाया जा रहा है,
नव - नवोन्मेष कर
'भला' किया जा रहा है।
वे आज के 'भगवान' हैं,
अर्थात समस्त छः
ऐश्वर्यों से समन्वित:
समस्त शक्ति,
समस्त ज्ञान,
समस्त सौन्दर्य,
समस्त कीर्ति,
समस्त धन -सम्पत्ति,
और समस्त वैराग्य के स्वामी।
वे 'दाता,
और सभी 'प्रापक'
रहुआ या
परान्नभोजी,
कमानी नहीं रोजी,
बैठे -बैठे खाना
परान्न पर मौज उड़ाना,
अपने पीछे -पीछे
मेषवत बुलाना,
उनका चले आना,
भले किसी
कूप में गिराना,
या मानसिक दास बनाना।
इधर से उधर यही है
ताना -बाना,
एक ही निशाना।
●शुभमस्तु !
09.11.2023 ◆5.15प०मा०
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