510/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चला उदर की
अग्नि शमन को
कुल्फी वाला एक।
पेटी बाँधी
लाल रंग की
साइकिल कहलाए।
आगे पीछे
थैले टाँगे
जिज्ञासा उपजाए।।
बेच कुल्फियाँ
गेहूँ चावल
देता उनमें फेक।
एक हाथ में
कुल्फी थामे
कहता आओ खाओ।
बालक बूढ़े
सब नर- नारी
ठंडी कुल्फी पाओ।।
ताप मिटाओ
जेठ मास है
लगा खड़ा मैं ब्रेक।
जूते पहने
नहीं पाँव में
फटी चप्पलें मैली।
एक लेखनी
लगी जेब में
बनी टाट की थैली।।
हरा अंगौछा
सिर पर धारे
मन में है शुभ टेक।
●शुभमस्तु !
28.11.2023●7.30प०मा०
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