शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

कवि बनाता उत्साह से● [ सोरठा ]

 490/2023


 

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गिर - गिर बार अनेक,चींटी चढ़े पहाड़  पर।

खोती  नहीं  विवेक, जिंदादिल उत्साह  से।।


हार - जीत है नित्य,मानव -जीवन खेल  है।

जीवन का औचित्य,बढ़ता चल उत्साह से।।


बनता वृद्ध सु-गात,यद्यपि बढ़ती आयु   से।

देता  वय   को  मात, बना  रहे उत्साह   तो।।


होता   क्या   उत्साह, नेताजी  से सीखिए।

मिटे न   कुरसी - चाह,बार - बार वे   हारते।।


मरे   नहीं   उत्साह,  चोरों  से भी सीख   लें।

बढ़ती  जाती   चाह,बार -बार जा जेल  में।।


पुनः- पुनः  कर  भूल, कवि  बनता उत्साह  से।

लिखता आम  बबूल, पाटल  सह कचनार भी।।


कहलाता   उत्साह, यौवन  उसका नाम   है।

नित  बढ़ने  की  चाह, मरे  नहीं जिंदादिली।।


भर  के  जोश  अपार, सीमा  पर सैनिक  खड़े।

खुलते    बंद    द्वार,  रग - रग   में उत्साह   है।।


देती  है  नित  ज्ञान, असफलता से सीख  लें।

घटे  न   तेरा   मान,  बढ़ता  चल उत्साह    से।।


बढ़े   न   आगे   पैर,  मरते  ही  उत्साह   के।

तभी   तुम्हारी   ख़ैर, जिंदादिल रहना   सदा।।


जिसमें    हो    उत्साह,  पाता है मंजिल  वही।

मरी न  मन की चाह, कच्छप जीता  दौड़   में।।


●शुभमस्तु !


16.11.2023●12.30पतनम मार्तण्डस्य।

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