शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

जैसी जिसकी दृष्टि ● [ दोहा ]

 489/2023

 

[सृष्टि,दृष्टि,विशिख,जीवटता,प्रभात]

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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              ●  सब में एक ●

जैसी  जिसकी दृष्टि  है,वैसी उसकी  सृष्टि।

तपता  भानु  निदाघ में, पावस में हो  वृष्टि।।

कर्म बिना इस सृष्टि में,करें न फल की   चाह।

पाना  यदि  गंतव्य  को, चलना दुर्गम    राह।।


नारी  जननी, कामिनी, रमणी, भार्या    रूप।

मात्र  दृष्टि  का  खेल  है,भगिनी वही  अनूप।।

विविध दृष्टि दृग में बसीं,बदल-बदल कर रूप।

सुहृद  सखा  होता  कभी,वही बने अरि   यूप।।


चला विशिख कामारि का,भस्म हुआ तब काम।

धरके   रूप   अनंग    का,  देह   हुई    उपराम।।

विशिख-वचन वाचाल के, चुभते  हैं  उर  बीच।

घाव  नहीं   भरते  कभी, कहलाता नर   नीच।।


जीवटता से  जो  जिए,उसका जीवन   धन्य।

भर  लेते   हैं  पेट   तो, कूकर- शूकर   वन्य।।

जीवटता  से प्राप्त कर,मानव निज   गंतव्य।

आजीवन   सद्बुद्धि   से,करता रह   कर्तव्य।।


रजनी  के  उपरांत  ही, आता  शुभ्र   प्रभात।

जागी है नव  चेतना, शुभ प्रतीक नित  तात।।

जागें   ब्रह्म  मुहूर्त में,  वेला   नवल   प्रभात।

समय  न खोना  एक पल, जीवन हो   अवदात।।

                ● एक में सब ●

विशिख -दृष्टि मत कीजिए,भाव - सृष्टि उत्कृष्ट।

जीवटता से कर सृजित,शुभ प्रभात  हो  पुष्ट।।


●शुभमस्तु !


15.11.2023●8.00आ०मा०

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