491/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज देख लो
जितना चाहो
फिर न मिले दीदार,
हम ऐसे किरदार।
पाँच वर्ष में
अवसर आया
दर्शन दे दें,
खुली हवा में
जनता देखे
हम मतमंगे ऐसे।
आज सुलभ
मंदिर में दर्शन
देवों के भगवान के,
नहीं मिलेंगे
फिर नेताजी
विजय माल को
डाल के।
द्वारपाल
बाहर ही रोके,
कैसे मिलने जा पाओ,
दान -दक्षिणा
यदि दे दो तो,
पल भर को दर्शन पाओ।
कैसा ये अब
प्रजातंत्र है,
नेता राजा कहलाए,
मत देकर नित
जनता सारी
बार -बार अति पछताए।
'शुभम्' यही तो
मूर्खतन्त्र है,
जनता बनती
मूर्ख सदा,
मत बिकते
नोटों के बदले
मत से कीमत
हुई अदा।
● शुभमस्तु !.
16.11.2023◆6.00पतनम मार्तण्डस्य।
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