गुरुवार, 30 नवंबर 2023

सुप्त सात्विकता जगाओ! ● [ अतुकांतिका ]

 514/2023

 

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●© शब्दकार 

●  डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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खोल दो

बन्द खिड़कियाँ

स्वच्छ हवा अंदर 

आने दो,

लगी हुई जो

तुम्हारे दिल में

उसे बुझ जाने दो।


प्रतिस्पर्धा के

खुले मैदान में आओ,

दौड़ते हुए किसी की

टाँग में 

अपनी टंगड़ी 

न अड़ाओ।


किन्तु तुम

आदमी हो

अपनी आदत से

बाज कैसे आओगे,

अपनी टंगड़ी से

औरों को गिराओगे।


कोई जरूरी नहीं कि

तुम किसी को 

गिरा पाओ,

सम्भव है

तुम स्वयं 

चारों खाने चित्त

स्वयं को पाओ।


'शुभम्' जगाओ

अपनी सुप्त सात्विकता,

और स्वयं भी

खुले मैदान में

दौड़ते हुए दिख पाओ,

सोई हुई लपटों को

बुझाओ !

पूरी तरह बुझाओ।

दानव से मानव

बन जाओ।


● शुभमस्तु !


30.11.2023●6.15प०मा०

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