502/2023
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● ©शब्दकर्ण
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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खिसियानी बिल्ली
करती है एक काम,
उतारती है गुस्सा भी
खम्भे पर,
करती तब आराम।
करे भी क्या?
करने को
कुछ तो हो !
चूहे भी मिले नहीं
पी नहीं सके जाम।
फिरती है
खौखिआई,
चिल्लाते बच्चे सब
शेर की मौसी आई,
मिमिआई
अविराम।
चढ़ गई पेड़ पर
पीछे पड़े
दौड़ श्वान,
जान बची
लौट आई
बसेरे के दरम्यान।
ऐसे ही आदमी भी
बना हुआ
खिसियानी बिल्ली,
करनी थी चोट
कुत्ते पर
बिल्ली पर कर डाली,
बेचारा ईर्ष्या से हैरान।
●शुभमस्तु !
23.11.2023●5.15पतनम मार्तण्डस्य।
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