रविवार, 12 नवंबर 2023

मन का ही अभिषेक हो ● [ दोहा ]

 484/2023


[सुगंध,मंजुल,वनवासी,अभिषेक,वैराग्य]

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●©शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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          ● सब में एक ●

कलिका में  यों  बंद   हैं, मोहक  रंग  सुगंध।

सुमन खिला बहने लगी,किए बिना अनुबंध।।

मानव के हर रूप में,बसती सहज   सुगंध।

बने आचरण कर्म की,तन-मन से  सम्बन्ध।।


मंजुल तेरे रूप की,छवि है प्रिय   अनमोल।

शब्द मूक  होते  जहाँ,सके न काँटा   तोल।।

मंजुल रूप निहार के,धन्य हुआ   मैं   आज।

मृगनैनी मन में बसी,जीवन का सुख साज।।


वनवासी प्रभु राम ने,  दिखलाई   वह   राह।

जो लिपि लिखी ललाट में,कर लो जन अवगाह

कष्टपूर्ण जीवन सदा, वनवासी    के  भाग।

सदा अभावों   में जिए,भरा किंतु   अनुराग।।


मन का ही अभिषेक हो,तब करना प्रभु-जाप

प्रतिमा भी तब पूजिए, मिटा कलुष - संताप।।

बाह्याभयन्तर शुद्धता,तन-मन का अभिषेक।

पहले ही अनिवार्य  है,अपना जगा   विवेक।।


इधर  जगत-संलग्नता, उधर विमल वैराग्य।

एक   साथ  संभव नहीं,सभी जानते   विज्ञ।।

बात  करें  वैराग्य की,लंपट कपटी    चोर।

कलयुग में ये आम है,जा धरती  के  छोर।।


           ● एक में सब ●

वनवासी    वैराग्य में,  ढूँढ़े    नहीं  सुगंध।

मन मंजुलअभिषेक से,तृप्त अटल अनुबंध।।

             

●शुभमस्तु !

08.11.2023◆5.30आ०मा०

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