सोमवार, 20 नवंबर 2023

जुनून बनाम पागलपन● [ व्यंग्य ]

 497/2023

   

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● © व्यंग्यकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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     शब्दकोश में पाए गए शब्दों में यह कदापि आवश्यक नहीं कि उनके शब्दार्थ या भाव सुरुचिपूर्ण, सकारात्मक और सर्वानुकूल ही हों। यदि किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने का जोश सामान्य न होकर असामान्य हो, तो प्रायः उसे जुनूनी कह दिया जाता है।यह सुनकर संबंधित को कभी भी कुछ बुरा या नकारात्मक नहीं लगेगा।इसके विपरीत यदि उसे पागल अथवा विक्षिप्त कह दिया जाए ,तो उसे कदापि सकारात्मक अनुभव नहीं होगा।इसका अर्थ यह हुआ कि किसी शब्द का किसी भाषा में ठीक वही अर्थ देना अनिवार्य नहीं है,जिसके लिए उसका निर्माण हुआ है।विभिन्न भाषाओं में उसके विविध भावान्तर हो सकते हैं। जब 'जुनून' शब्द  का कोशीय पर्याय  जानने का प्रयास किया गया तो उसके अनेक भाव रूप अर्थ प्राप्त हुए।जैसे :पागलपन,विक्षिप्त,उन्माद,सनक, दीवानापन,ख़ब्त।

यदि दुनिया में विद्यमान पागलपन के आकलन की बात की जाए तो यह अनेक कोटियों में विभाजित किया जा सकता है।कुछ ऐसे भी पागल हैं ,जिन्हें कोई पागल नहीं कहता। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। जैसे : कोई कुर्सी के लिए पागल है ,तो उसके लिए कुछ भी कर सकता है। और वह इसके लिए भी तैयार बैठा है कि  ' कबिरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ।जो घर फूँके आपना चले हमारे साथ।' कोई राजनीति का दीवाना है तो किसी पर समाज सेवा का भूत सवार है। कोई धर्म के लिए 'झंडा ऊँचा रहे हमारा' करने में कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। किसी पर सम्मान पाने का भूत बैठा हुआ है।ये सभी प्रकार की 'अतियाँ'  ही जुनून हैं ।दीवानापन हैं, सनक हैं ,ख़ब्त हैं और ज़्यादा आगे बढ़कर कहना चाहें तो पागलपन ही हैं। 

जब कोई व्यक्ति किसी कार्य की तल्लीनता में इतना निमग्न हो जाए कि दिन- रात का भेद भी भूल जाए।  किसी काम की सफलता का श्रेय भी प्रायः ऐसे ही जुनून को दिया जाता है।यदि महान वैज्ञानिक महामहिम अबुल कलाम जी अपने विज्ञान के जुनून में इतने न खो गए होते तो वह विश्व के इतने महान वैज्ञानिक नहीं बन पाते। यहाँ तक कि उन्हें विवाह करने और पत्नी के साथ रहने का भी समय नहीं था।यदि अतीत के पन्नों में झाँक कर देखें तो राजकुमार सिद्धार्थ भी यदि दुःख की खोज के लिए सन्यास नहीं लेते तो संसार को इतना बड़ी वैराग्यवान महान विभूति नहीं मिलती। इसे पागलपन नहीं कह सकते।यह जुनून का ही  सत - परिणाम है।महाकवि कालिदास के जुनून ने ही संस्कृत साहित्य का महाकवि बना दिया।  

 महाकवि कालिदास का नाम आया तो कवियों की बात भी क्यों न कर ली जाए।जब तक कोई कवि या रचनाकार जुनून की हद से भी उस पार नहीं चला जाए ,तब तक महानता उसके चरण नहीं  चूमती। इसका अर्थ यह हुआ कि महानता का जुनून या पागलपन से निकटता का सम्बंध अवश्य है। पागलखाने में कपड़े फाड़ने वाले या ईंट पत्थर फेंकने वालों को भी यदि सही दिशा मिल जाए तो कोई संदेह नहीं कि उनमें भी कुछ न कुछ  ख्याति लब्ध करने वाली हस्तियाँ मिल जाएं।इसके लिए उनके चिकित्सकों को भी जुनून की सीमा तक प्रशिक्षण देना होगा।अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि पागलों के बीच रहकर वे भी पागल हो जायें।

जुनून या पागलपन की परिभाषा से एक बात यह भी निकल कर आती है कि केवल सामान्य बने रहकर आदमी दाल,रोटी और हरी सब्जी खाने वाला चुसा हुआ आम ही बनकर रह जाएगा। उसके वक्ष पर 'महान' का  तमगा तभी झिलमिलायेगा जब वह इन 'आमों' के ढेर  से बाहर निकल कर अपनी अलग ही सुंगध छोड़ेगा। 'फूल वो सर पे चढ़ा जो चमन से निकल गया।' 

देश और दुनिया के नक्शे पर नजर डालें तो देखते हैं कि महान विभूतियाँ बिना किसी विशेष उन्माद ,जुनून या सनक के नहीं अवतरित हो गईं! आप भी अपने भीतर टटोल कर देख लें कि आप में भी 'महान' बनने के जरासीम तो नहीं कुलबुला रहे। यदि हाँ, तो निकट भविष्य में आपको भी महान कवि ,लेखक,व्यंग्यकार, वैज्ञानिक,राजनेता,समाजसेवी, धर्म-धुरंधर बनने से कोई नहीं रोक सकता।लैला -मजनू, शीरीं फ़रहाद कोई यों ही नहीं बन जाता। तलवार की दो धारों पर चलना पड़ता है।ये भी एक जुनून है। संसार का कोई भी क्षेत्र हो, बस समर्पण चाहिए। वहीं आप अपनी 'महानता' का लोहा मानने के लिए इस दाल - रोटी और  हरी सब्जी खाने पचाने वाली दुनिया को बाध्य कर ही देंगे।बस कर्म के पीछे लट्ठ लेकर दौड़ पड़िए और किसी की  भी इधर से सुनिए और उधर से आर-पार कर डालिए।बस जुनून का डंडा उठाने भर की देर है !  अब देरी भी क्यों ?चल पड़िए! अपने गंतव्य की ओर और 'सामान्य 'से  'असामान्य' हो जाइए।

●शुभमस्तु !

20.11.2023●7.15 प०मा०

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