507/2023
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● समांत :आई।
●पदांत : अपदांत।
●मात्राभार : 16.
●मात्रा पतन :शून्य।
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●©शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शरद सुहानी शीतल छाई।
अद्भुत है प्रभु की प्रभुताई।।
पावस की रिमझिम है बीती,
हलकी-हलकी शीत सुहाई।
विजयादशमी पर्व मनाया,
दीपावलि की ज्योति जलाई।
नहीं एक सम ऋतु भारत में,
कर्ता की मनहर कविताई।
षड ऋतुओं का शुभागमन हो,
कभी किसी की हुई विदाई।
परिवर्तन सबको हितकारी,
छिपीं हजारों सुखद भलाई।
'शुभम्'चलें कुछ शोध करें हम,
पड़ी ज्ञान पर तम की काई।
●शुभमस्तु !
27.11.2023●6.15आ०मा०
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