478/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मुफ़्त का हर माल
बड़ा भाता है,
चावल हो या दाल
लुत्फ़ लाता है,
खाए जाओ!
खाते जाओ!!
खाते चले जाओ!!!
मजे उड़ाओ।
मुफ्तखोरी में
लुट गई जनता,
देख लो आप ही
मतमंगा
किस कदर तनता?
आज चरण चुम्बन करे
कल कुछ और बनता।
क्यों करे कोई श्रम
बहाए तन से स्वेद ,
जौंक और
आदमी में नहीं है
अब शेष कोई भेद!
निकम्मा बना डालो
मुफ्त का चावल
पाम ऑइल खिला लो,
देश की जनता को
गुलाम बना लो।
कमजोर करने के
तरीके हैं बड़े -बड़े!
देख ही लो
द्वार चौपाल पर
चौराहे पर
जो बगबगे वस्त्रधारी खड़े।
बिक गए हो
चार मुट्ठी चावलों में,
दलिया-से
जब दले जाओगे
कलयुगी कलों में,
कहीं कुछ भी
कभी मुफ़्त नहीं होता,
बिना सोचे पाता है जो
सदा रोता ही रोता।
मुफ्तखोरी में बिकने से
बुरा कुछ नहीं होता,
सँभल जाओ अभी
अपने पैरों पर हो खड़े,
पसीने की
दो बिना चुपड़ी भली,
देखा नहीं है क्या
अब भी जो 'शुभम्'
वेश बदले हुए ये
आ गए हैं छली।
●शुभमस्तु !
02.11.2023◆9.00प०मा०
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