शनिवार, 4 मई 2019

ग़ज़ल

चमचों की देन भगौना है,
बस इसी बात का रोना है।

मखमल पर गदहा बिठा दिया,
कैसे जाने  क्या होना है!

जनता भूखी सड़कें टूटी,
उनका मक़सद बस सोना है।

आँखों में घड़ियाली आँसू,
अच्छा -सा नाटक होना है।

हो रही दिलासा की बारिश,
दाने दिखावटी बोना है।

किसको चिंता मादरे वतन,
खाली दिल का हर कोना है।

अपनी तो चम्मच चाँदी की,
पत्तल न वहाँ पर दोना है।

औलादें अपनी अमरीका,
क्या इन बच्चों का होना है!

दोहरी  नीतियाँ   हैं  लागू,
क्या 'शुभम'वतन का होना है!

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता: ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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