♾■■♾■■♾■■♾■■
(1)
कितना वहशी हो गया ,
देखो रे इंसान।
लाज - हया धो पी गया ,
दिखती कोरी शान।।
दिखती कोरी शान,
न समझे बहना माता।
क्यों दी मानव - देह ,
बता दे अरे विधाता!!
श्वान सुअर - सा काम,
भरा मानव - तन इतना।
पामर पापी क्लीव ,
हुआ तू वहशी कितना??
(2)
जाया जिसने देह से ,
उसका जबरन भोग ?
पशु से पामर नीच नर ,
कैसा कुत्सित रोग ??
कैसा कुत्सित रोग ,
न छोड़े माता बहना।
अरे नीच ! नर -श्वान !!
'कर्म' तेरा क्या कहना !!
बनता चीता शेर ,
यौनि क्यों नर की पाया ?
उससे ही सम -भोग ,
मानवी थी तव जाया ??
(3)
मानव - तन की खाल में,
मिलते शूकर श्वान।
पहन बगबगे वसन वे ,
बनते बड़े जवान ??
बनते बड़े जवान,
नहाते यमुना - गंगा।
छिपे वेश के बीच ,
भेड़िए बिल्ला - रंगा।।
भोलीभाली नारि,
बचे कैसे नर - दानव।
सबला बनकर जीत ,
सकेगी वहशी मानव।।
(4)
सबला हो सबला रहो,
दो वहशी को चीर।
अंग काट प्रतिशोध लो ,
छेदो तन ले तीर।।
छेदो तन ले तीर,
दुसह दुर्गा बन जाओ।
बचा आन औ' मान,
शेरनी बनकर खाओ।।
लगे न दामन दाग,
नहीं हो अब तुम अबला।
'शुभम' न काँपे हाथ ,
बहन माता सब सबला।।
( 5 )
नारी क्यारी बाग की,
प्रसरित विमल सुगंध।
घर - घर में बिखरी रहे,
जिसकी पावन गंध।।
जिसकी पावन गंध,
पुरुष है जिसका माली।
होता है हर धाम ,
बिना घरनी के खाली।।
' शुभम ' करें सम्मान ,
न उजड़े घर की बारी।
होता स्वर्ग समान,
जहाँ पूजित है नारी।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🏃♀ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
04.12.2019 ● 5.00अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें