कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।
अपने ख्वाबों में बुदबुदा रहे हैं हम।।
नए के नाम पर स्वार्थों का बोलबाला है।
अमृत के प्याले में जहर घोल डाला है।।
देश की हर गरीबी भुना रहे हैं हम।
कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।।
आदमी , आदमी के लहू का प्यासा है।
झोपड़ी में अँधेरा है महल उजासा है।।
देश किस्तों में बँटवा रहे हैं हम।
कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।।
जाति - धर्मों में बँट रहा मानव है।
अपना पंजा जो फैला रहा दानव है।।
हिरण दम्पति को वंशी सुना रहे हैं हम।
कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।।
कहीं भाषा तो कहीं धर्म खंडित है।
कहीं नासा से देश 'शुभम' मंडित है।
नाली में बहता जल पिला रहे हैं हम।
कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।।
आँकड़े आभास प्रगति का देते हैं।
झूठे तथ्यों को सच मान हम लेते हैं।।
सपनों के महल, गढ़ सजा रहे हैं हम।
कैसा - कैसा भारत बना रहे हैं हम।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🪐 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
18.12.2019 ◆3.30 अपराह्न।
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