मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

कवि की कविता [ दोहे ]


♾◆◆♾◆◆♾◆◆♾◆◆
कवि -  मानस  में  भाव  बहु,
जिनका        विशद    प्रभाव।
कह     न   सकेगा  शब्द   दो ,
हो      यदि भाव - अभाव।1।।

भव    में     ज्ञान   अपार    है,
भव        ही     भरता    भाव।
भव    निधि  के  सद नीर  से,
कवि      भरता    सद्भाव।।2।।

निज    कविता  अनुरूप  ही ,
कवि     का    चरित  महान।
होना      निश्चित     चाहिए ,
उसे      गुणों    की खान।।3।।

कविता      सत    साहित्य है ,
दे          हितकर       संन्देश।
जो    कवि    को   सम्मान  दे,
है     महान      वह  देश।।4।।

भूखे        माला      शॉल    के,
सियासती        कवि     लोग।
सत     कवियों    को  लाँघकर,
फैलाते       बहु        रोग।।5।।

चाटुकारिता         में      पगे ,
कवि      के     पद ,सिर ,हाथ।
नेताजी       के       चरण   में,
झुका     रहे    नित  माथ।।6।।

अहंकार        सिर    पर   चढ़ा,
कहता        मैं       कविराज।
मैं      महान    कवि   देश का,
मुझे     चाहिए       ताज।।7।।

कुछ कवि  मदिरा पान कर,
चढ़        जाते       हैं     मंच।
पहन     गेरुआ     वसन    वे ,
हया    न       उर    में   रंच।।8।।

सुरा        सुंदरी    के     बिना,
जिन्हें       न     आते   भाव।
रोक -  टोक     करना   नहीं,
आ        जायेगा      ताव।।9।।

गली  -  गली     कवि   कूदते ,
ज्यों      पावस      में    भेक।
हा -हा !    ठी - ठी !! मंच पर,
काम     बड़े      ही नेक ।।10।।

चमचागिरी        से     चुपड़ ,
कविता      कर     दो    पेश।
वाह !   वाह !!       होने  लगे,
'शुभम '   यही     संदेश।।11।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🎻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

10.12.2019 ◆6.15 अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...