समय बदलता जा रहा,
कहते हैं सब लोग।
समय सदा गतिशील है ,
करें यथा उपभोग।।1।।
रोना रोते समय का ,
पर करते बर्वाद।
'समय नहीं है पास में ',
सुने शिखर संवाद।।2।।
समय नष्ट जिसने किया,
मिले वही परिणाम।
चिड़ियों ने खेती चुगी,
गिरता धरा धड़ाम।।3।।
समय - समय का फेर है ,
समय - समय की बात।
समय बीत जब जायगा,
फिर क्या रहे बिसात??4।।
शशि , सूरज नित समय से,
फैलाते निज कांति।
दिनकर दिन करता रहे,
सोम निशा की शांति।।5।।
पवन बहे धरती चले ,
प्रसरित विशदाकाश।
नहीं विलंबित एक पल ,
सत्य , नहीं उपहास।।6।।
अनल समय से ताप दे,
मेघ दे रहे आप।
समय नष्ट जो कर रहा,
स्वयं समय का शाप।।7।।
प्रकृति मौन रहकर सदा,
रखे समय का ध्यान।
बड़बोला मानव नहीं,
रखे समय का ज्ञान।।8।।
खिलतीं कलियाँ समय से,
फ़ैलातीं सद गंध।
मानव - हृदय मलीनता,
दे दूषित दुर्गंध ।।9।।
पल्लव लता निकुंज के ,
हिल - हिल दें संदेश।
जैसे हम हिलमिल रहें,
मनुज रहें तज द्वेष।।10।।
'शुभम' समय फिर लौटकर,
आता कभी न पास।
क्षण - क्षण के उपयोग से,
जीवन भरे सुवास।।11।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌐 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
19.12.2019●7.00अपराह्न।
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