न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।
पहले हर आदमी एक इंसान हो।
एक ही द्वार से दोनों आए हुए।
एक ही राह पर दोनों जाते हुए।।
एक परमात्मा की दो संतान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
ये चोटी औ' दाढ़ी हैं नकली सभी।
बाहरी ऊपरी हैं न असली कभी।।
इनसे भी कहीं कोई पहचान हो ?
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
भेद भाषा या वसनों से होता नहीं।
दर्द होता है सीने में रोता वही।।
हिंदी -उर्दू दो बहनों का इक मान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
धर्म मज़हब की दीवार क्यों हैं खड़ी?
क्यों वादों -विवादों की लगती झड़ी??
न निर्बल कोई ना हिं बलवान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
धूप, पानी, हवा तो बँटे ही नहीं।
नील अम्बर कहीं भी कटे ही नहीं।।
फिर जमीं के लिए क्यों घमासान हो ?
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
ये मंदिर औ' मस्जिद का किस्सा नहीं।
ईश की मान्यता का भी हिस्सा नहीं।।
ईद, होली, दिवाली की शुभ शान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
हरा है न नीला कोई रक्त भी।
लाल ही बह रहा शख़्शों में सभी।।
ख़ाक में हो दफ़न एक श्मशान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
गले से गले मिल के भुजहार हो।
आदमी का आदमी को ये उपहार हो।।
गंगा-यमुनी सुसंस्कृति का 'शुभम'गान हो।
न हिन्दू कोई न मुसलमान हो।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
26.12.2019●8.00अपराह्न।
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