सोमवार, 30 दिसंबर 2019

हर आदमी एक इंसान हो [ उद्बोधन - गीत ]



न   हिन्दू  कोई  न  मुसलमान हो।
 पहले हर आदमी एक इंसान  हो।

एक   ही  द्वार  से  दोनों  आए हुए।
एक  ही   राह  पर  दोनों जाते हुए।।
एक   परमात्मा  की   दो  संतान हो।
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान हो।।

ये  चोटी  औ' दाढ़ी हैं नकली सभी।
बाहरी   ऊपरी   हैं   न असली कभी।।
इनसे  भी  कहीं कोई पहचान हो ?
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान हो।।

भेद  भाषा या वसनों से होता नहीं।
दर्द   होता  है  सीने   में  रोता वही।।
हिंदी -उर्दू  दो बहनों का इक मान हो।
न  हिन्दू  कोई  न मुसलमान हो।।

धर्म मज़हब की दीवार क्यों हैं खड़ी?
क्यों वादों -विवादों की लगती झड़ी??
न  निर्बल  कोई  ना हिं बलवान हो।
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान हो।।

धूप,  पानी,  हवा  तो  बँटे ही नहीं।
नील अम्बर  कहीं  भी कटे ही नहीं।।
फिर जमीं के लिए क्यों घमासान हो ?
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान हो।।

ये मंदिर औ' मस्जिद का  किस्सा नहीं।
ईश की  मान्यता का भी हिस्सा नहीं।। 
ईद,  होली,  दिवाली  की शुभ शान हो।
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान हो।।

हरा   है  न  नीला  कोई   रक्त भी।
लाल  ही  बह  रहा शख़्शों में सभी।।
ख़ाक  में  हो  दफ़न  एक श्मशान हो।
न   हिन्दू   कोई  न मुसलमान  हो।।

गले  से गले    मिल के भुजहार हो।
आदमी  का  आदमी  को  ये उपहार हो।।
गंगा-यमुनी सुसंस्कृति का 'शुभम'गान हो।
न   हिन्दू   कोई  न  मुसलमान हो।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

26.12.2019●8.00अपराह्न।

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