गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

धिक्कार नराधमो ! [ अतुकान्तिका ]


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कानून की
आँखों पर 
पट्टी बँधी है,
नारियों की
मान -मर्यादा 
दिन में लुटी है!
कोई और नहीं
इंसान ही
बन गया है 
हैवान !
नर -पिशाच
जंगली भेड़िया?
कब सख़्त होंगी
प्रभो !
कानून की बेड़ियाँ?

ऐ नराधम !
नीच पामर,
मत समझ
 माँ -बहन को
भात का चावल!
जब यही नारी 
बन जाएगी चंडी,
हाथ में ले
 रक्त के खप्पर 
भस्म कर देगी
तुझे
तू सँभल जा,
पामर सँभल जा।

जिस यौनि से
नर यौनि में  आया,
जन्मदात्री है वही
तेरी है जाया!
पड़ गई जो 
नारियों की 
जिस्म पर तेरे
काली छाया ,
न रहेगा तू ,
न तेरी काया!!

धैर्य की 
वह मूर्त रचना,
बिना नारी के
सृष्टि में
नहीं कुछ
औऱ बचना ,
काम के कीड़े!
नर पिशाच!!
जला देगी  तुझे,
तेरे ही
काम की आँच,
और मत कर 
तू तीन पाँच,
नारियों के भी
निर्मल हृदय 
के पृष्ठ बाँच!

समय वह 
आ गया है ,
जब काम के कीड़े ,
भस्म हो ही जायेंगे,
नारियों के
कुपित कोपानल  में,
सो रहा है
देश का कानून,
स्तब्ध प्रशासन,
नैतिकता की स्वयं
कर रक्षा सुरक्षा ,
हवस की मत बढ़ा
भीषण बुभुक्षा ,
माँ -बाप 
अपने वंश का,
नाम करता क्षार,
करता विध्वंस- सा,
ले हाथ में
करवाल,
मिटा दे 
काम के कीड़े,
निर्माण हो तब,
'शुभम ' समाज का,
एक नए आज का ,
ललाट पर 
मानव के 
पुनः चमके ,
दमकता ताज -सा।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

05.12.2019 ◆6.30 पूर्वान्ह।

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