चाँदनी चाँद सँग मुस्का रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
जा चुके वे दिन गईं वे मधुर रातें।
याद आती हैं तुम्हारी सरस् बातें।।
चेतना में फिर खुमारी छा रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
अगर वे संयोग के पल बाँध लेता।
साधना आनन्द की मैं साध लेता।।
सोचकर मन की कली हर्षा रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
तुम्हारे रूप में जो मद - मोहिनी है।
चाँद की उपमा सदा कमतर गिनी है।।
आज तक नित प्रणय को सरसा रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
मेरे हृदय में गहनता से तुम बसी हो।
देह की नस -नस समाई तुम हँसी हो।।
मैं हूँ नन्हा पल प्रिया अरसा रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
मैं पपीहा स्वाति की तुम बूँद प्यारी।
प्यास हूँ मैं तृप्ति की तुम गूँज न्यारी।।
'शुभम' की उर - शांति का घर -सा रही है।
तुम्हारी याद रस बरसा रही है।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
❤ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
11.12.2019◆6.30अपराह्न।
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