मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

यह वेला ही कुछ ऐसी है! [ नवगीत ]


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यह वेला ही
कुछ ऐसी है!

आँसू भी हैं
खुशियाँ भी हैं,
कुछ  मुरझाए हैं 
विनत   सुमन ,
कुछ खुलती कलियाँ
हैं तनी प्रमन,
इस ओर
विदाई की घड़ियाँ,
उस ओर 
बधाई की  लड़ियाँ,
जान लें 
घड़ी यह कैसी है!
यह वेला ही 
कुछ ऐसी है!

कुछ यादें
खट्टी -मीठी हैं,
कुछ बातें 
सीठी -सीठी हैं,
बातें हैं
कुछ अपनों की,
घातें भी हैं कुछ
कितनों की,
लगता जैसे
सब सपना है ,
कौन यहाँ पर
अपना है ?
यह मानव जीवन
तपना है,
यह कर्मभूमि
स्वदेशी है,
यह वेला ही 
कुछ ऐसी है !

गैरों ने 
मुझको नेह दिया,
सम्मान दिया,
कुछ ज्ञान दिया,
सत्कार किया,
अपनेपन का भी
भान दिया,
मन में समझो
यह वैसी है,
यह वेला ही 
कुछ ऐसी है!

एक जाता है
एक आता है,
आने -जाने का
नाता है!
यह जो जाता है
आज अभी,
वह लौट नहीं
आएगा कभी,
उसकी ही 
विदाई की वेला ,
दो हजार बीस 
जो आना है,
उल्लास प्रगति का
शुभ मेला ,
घड़ी  आज 
 यह  ऐसी है,
यह वेला ही 
कुछ ऐसी है!

खोल दो
खिड़कियाँ द्वार सभी,
अपने उर के
उद्गार सभी,
आओ हम
कर लें इसका
'शुभम' अभिनंदन,
बन जाये 
धरा ये
नंदन वन,
मानवता को हम
प्यार करें,
ममता स्नेह के
भाव धरें,
ये घड़ी न
ऐसी - वैसी है ,
ये वेला ही
कुछ ऐसी है।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

31.12.2019 ●6.30 अपराह्न।

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