सोमवार, 9 दिसंबर 2019

ग़ज़ल


♾◆◆♾◆◆♾◆◆♾
      काफिया - आने 
       रदीफ़    - लगा
♾◆◆♾◆◆♾◆◆♾
बेसुरे        गीत    इंसान   गाने लगा।
आदमी   आदमी को  ही खाने लगा।।

दौलत    के    लिए   अंधा  बहरा बना,
नीति     को  टाँग  धन   कमाने लगा।

हवस      का  हर   पुजारी  दरिंदा हुआ,
नारियों     को दनुज - सा सताने लगा।

किसका विश्वास क्यों अब करे आदमी,
बेटियों   का  जिस्म  उसको भाने लगा।

धर्म ,    नीतियाँ     रो   रहीं,    खो रहीं,
न्याय   का  सेतु   भी  भरभराने लगा।

दुर्गा - पूजा    में    दुर्गा   को  माता कहे,
जिस्म   माता  का सुत को सुहाने  लगा।

कितने    भी   कहें  आदमी  के सितम,
आज   शैतान     वंशी     बजाने लगा।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

09.12.2019◆6.30 अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...