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उज्ज्वल हाथी धर्म का,
अंधे खड़े हजार।
पूँछ , पैर थामे खड़े ,
करते धर्म विचार।।1।।
धर्म - धर्म चिल्ला रहे,
करते नर - संहार।
धर्म बताते पूँछ को,
मिले नहीं आकार।।2।।
पैर , पेट या पूँछ में,
या हाथी की सूंड।
पूर्ण धर्म होता नहीं ,
समझ - समझ नर मूढ़।।3।।
सम्भव हुआ न आज तक ,
देखें हाथी पूर्ण।
एक अंग ही देखकर ,
बना हुआ नर मूढ़।।4।।
छोटा किसका धर्म है ,
किसका धर्म महान।
कोरा मनुज - प्रलाप ही,
कोरी तेरी शान।।5।।
मानव - धर्म महान है ,
और सभी बकवास।
जो मानव - हित में नहीं,
उससे कैसी आस।।6।।
जिसके कारण रक्त की ,
नदियाँ बहें हजार।
धर्म नहीं वह मनुज का ,
यही धर्म का सार।।7।।
अपना कर्म न देखते ,
लड़ें धर्म के हेत।
बिना बाड़ खा जाय ज्यों,
वन्य मनुज का खेत।।8।।
कर्म बीज है जीव का,
पीछे उसके धर्म।
'शुभम ' कहे नर जान ले ,
यही धर्म का मर्म।।9।।
धर्म न बाधा कर्म में ,
कर ले जीव सुधार।
कर्म न बाधा धर्म में,
ले नर यौनि संभार।।10।।
धर्म - रार मत ठान तू,
कर ले प्रथम विचार।
'शुभम ' कर्मरत हो सदा ,
जीवन का आधार ।।11।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🪐 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
14.12.2019 ◆ 7.30 पूर्वाह्न।
www.hinddhanush.blogspot.in
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