रविवार, 15 दिसंबर 2019

कर्म के पीछे धर्म है [ दोहा ]


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उज्ज्वल     हाथी    धर्म   का,
अंधे          खड़े         हजार।
पूँछ ,    पैर        थामे    खड़े ,
करते      धर्म    विचार।।1।।

धर्म   -  धर्म     चिल्ला    रहे,
करते             नर    -   संहार।
धर्म         बताते      पूँछ   को,
मिले       नहीं     आकार।।2।।

पैर ,   पेट     या      पूँछ   में,
या           हाथी     की     सूंड।
पूर्ण         धर्म     होता     नहीं ,
समझ  - समझ  नर मूढ़।।3।।

सम्भव    हुआ  न आज तक ,
देखें            हाथी        पूर्ण।
एक    अंग     ही    देखकर ,
बना    हुआ  नर    मूढ़।।4।।

छोटा     किसका      धर्म  है ,
किसका         धर्म      महान।
कोरा      मनुज  -   प्रलाप ही,
कोरी        तेरी     शान।।5।।

मानव  -    धर्म   महान    है ,
और        सभी     बकवास।
जो   मानव  - हित   में नहीं,
उससे   कैसी      आस।।6।।

जिसके     कारण   रक्त की ,
नदियाँ       बहें        हजार।
धर्म     नहीं    वह  मनुज  का ,
यही       धर्म     का   सार।।7।।

अपना       कर्म   न     देखते ,
लड़ें           धर्म      के      हेत।
बिना     बाड़    खा जाय ज्यों,
वन्य    मनुज   का     खेत।।8।।

कर्म       बीज    है    जीव   का,
पीछे         उसके         धर्म।
'शुभम '     कहे  नर  जान  ले ,
यही       धर्म       का मर्म।।9।।

धर्म    न       बाधा     कर्म   में ,
कर       ले       जीव     सुधार।
कर्म       न    बाधा      धर्म  में,
ले    नर    यौनि    संभार।।10।।

धर्म  -   रार   मत   ठान   तू,
कर      ले     प्रथम     विचार।
'शुभम '     कर्मरत   हो   सदा ,
जीवन        का  आधार ।।11।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🪐 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

14.12.2019 ◆ 7.30 पूर्वाह्न।

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