ये कैसा कोहराम मचाया!
लोकतंत्र को नाच नचाया!!
कानूनों की उड़ा धज्जियाँ।
मानव को खाया ज्यों भजिया
जन - जीवन में भय बरपाया।
ये कैसा कोहराम मचाया!!
ज्ञान अधूरा ख़तरनाक है।
अंधी इनकी हुईं आँख हैं।।
स्वयं वृथा गृहयुद्ध रचाया।
ये कैसा कोहराम मचाया।।
हित-अनहित तो सोचा होता।
अपने पथ में काँटे बोता।।
शैतानी चालों का साया।
ये कैसा कोहराम मचाया।।
राजनीति भारत की गंदी।
हुआ आदमीअति स्वच्छन्दी।।
मनमाना क़ानून बनाया।
ये कैसा कोहराम मचाया ।।
हम स्वदेश में क्यों लड़ते हैं?
आपस में सब क्यों भिड़ते हैं?
'शुभम' सहज संदेश सुझाया।
ये कैसा कोहराम मचाया।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
💎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '
21.12.2019●10.45पूर्वाह्न।
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