सूरज दादा बाहर आओ।
हमको अपना मुँह दिखलाओ।
तनी दूधिया शीतल चादर।
मेघों से घिर आया अम्बर।।
गरम धूप भू पर बिखराओ।
सूरज दादा बाहर आओ।।
बंद हुआ स्कूल हमारा।
स्वेटर ,कम्बल बने सहारा।।
बंद खेल चालू करवाओ।
सूरज दादा बाहर आओ।।
घर में होती नहीं पढ़ाई।
स्वेटर बुनती करें कढ़ाई।।
मम्मी को तो कुछ समझाओ।
सूरज दादा बाहर आओ।।
भजन कर रही है पिड़कुलिया।
चूँ - चूँ करती है गौरैया।।
तुम प्रभात का राग सुनाओ।
सूरज दादा बाहर आओ।
ओस लदी है पत्ती - पत्ती।
जले रात में धुँधली बत्ती।।
मौसम को थोड़ा गरमाओ।
सूरज दादा बाहर आओ।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप ' शुभम'
21.12.2019 ●10.15 पूर्वाह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें