शीत - लहर घर - बाहर छाई।
ठंडे बिस्तर और रजाई।।
भीगे लगते कपड़े तन के।
चली हवाएँ स्वर सन-सन के।
पत्ती - पत्ती है लहराई।
शीत - लहर घर- बाहर छाई।।
ठंडे पेड़ , लताएँ , पौधे।
वे तुषार में होते औंधे।।
आग- लपट देती झुलसाई ।
शीत-लहर घर-बाहर छाई।।
कोहरा छाया बाहर गाढ़ा।
चादर श्वेत धूम - सा बाढ़ा।।
लगती सुंदरता मनभाई।
शीत-लहर घर-बाहर छाई।।
अच्छे लगते गरम पकौड़े।
दाल मूँग के नरम मगौड़े।।
मूँगफली तिल ग़ज़क सुहाई।
शीत-लहर घर-बाहर छाई।।
साग चने भुजिया सरसों का।
शकरकन्दऔ 'ईख-रसों का।।
स्वाद बड़ा ही आनन्ददायी।
शीत-लहर घर-बाहर छाई।।
गरम बाजरे की है रोटी।
बनी हाथ से मोटी - मोटी।।
छाछ और रायता सँग लाई।
शीत-लहर घर-बाहर छाई।।
नया वर्ष कल आने वाला।
संक्रांति का पर्व निराला।।
'शुभम'शिशिर की शीतलताई
शीत -लहर घर -बाहर छाई।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🟣 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
27.12.2019◆3.00अपराह्न।
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