सोमवार, 30 दिसंबर 2019

शीत-लहर घर -बाहर छाई [ बालगीत ]


शीत - लहर घर - बाहर छाई।
ठंडे     बिस्तर  और   रजाई।।

भीगे  लगते   कपड़े   तन के।
चली हवाएँ स्वर सन-सन के।
पत्ती  -  पत्ती     है    लहराई।
शीत - लहर घर- बाहर छाई।।

ठंडे    पेड़ ,    लताएँ ,   पौधे।
वे   तुषार  में    होते    औंधे।।
आग- लपट  देती   झुलसाई ।
शीत-लहर  घर-बाहर  छाई।।

कोहरा   छाया  बाहर  गाढ़ा।
चादर  श्वेत  धूम - सा बाढ़ा।।
लगती     सुंदरता   मनभाई।
शीत-लहर  घर-बाहर  छाई।।

अच्छे लगते   गरम  पकौड़े।
दाल मूँग  के  नरम  मगौड़े।।
मूँगफली तिल ग़ज़क सुहाई।
शीत-लहर घर-बाहर  छाई।।

साग चने भुजिया सरसों का।
शकरकन्दऔ 'ईख-रसों का।।
स्वाद  बड़ा  ही  आनन्ददायी।
शीत-लहर  घर-बाहर  छाई।।

गरम  बाजरे   की   है   रोटी।
बनी  हाथ   से मोटी - मोटी।।
छाछ और  रायता सँग लाई।
शीत-लहर   घर-बाहर छाई।।

नया  वर्ष  कल   आने  वाला।
संक्रांति   का   पर्व  निराला।।
'शुभम'शिशिर  की शीतलताई
शीत -लहर  घर -बाहर छाई।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🟣 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

27.12.2019◆3.00अपराह्न।

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