साहित्य -सृजन :
📒 एक आत्म मूल्यांकन 📒
🌹ॐ श्रीसरस्वतयै नमः🌹
🌷ॐ☘ॐ🌷ॐ☘ॐ🌷
वीणा वादिनी विद्या और काव्य की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की कृपा है कि मैं आज भी वर्ष 1963 (11 वर्ष) की अवस्था से अद्यतन माँ सरस्वती की अनवरत साधना में निरत रहते हुए काव्य -साधना में संलग्न हो रहा हूँ। इस अंतराल में हजारों कविताएँ, लेख, निबंध , एकांकी ,कहानी, लघुकथाएँ, ,व्यंग्य आदि विविधरूपिणी पद्य और गद्य की रचनाएँ लिखने के साथ - साथ अभी तक दस पुस्तकों का प्रकाशन भी हो सका है। इस अंतराल में देश और विदेश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया। यह शत प्रतिशत सत्य है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं रहा औऱ मैं स्वयं भी सियासती वेशाखियों पर चढ़कर साहित्य - सेवा की यात्रा नहीं कर रहा हूँ । ये मेरे लिए अत्यंत हर्ष और सौभाग्य का विषय है। यही कारण है कि अमेरिका से भी मेरी जीवनी प्रकाशित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ , जिसमें मेरा अपना कोई प्रयास नहीं रहा ।साथ ही स्वदेश की डेढ़ दर्जन से अधिक डायरेक्टरीज में भी सचित्र जीवनी प्रकाशित हुई।
वर्ष 2018 में मेरा एक महाकाव्य तपस्वी बुद्ध प्रकाशित हुआ , जो वर्ष 1971 में उस समय लिखा
गया था , जब मैं कक्षा 11 का विज्ञान का विद्यार्थी था। उस समय सिद्धार्थ बुद्ध सम्बन्धी साहित्य का गहन अध्ययन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।जिसका परिणाम यह महाकाव्य था। यद्यपि मैं चौथी कक्षा से ही कविताएं लिख रहा था। 05 जून 2019 को तूलिका बहुविधा मंच से वृंदावन के ' प्रिया पैलेश होटल' में आयोजित एक विशाल साहित्य -समारोह में श्रद्धेय डॉ. राम सेवक शर्मा 'अधीर', श्रद्धेय श्री शिव ओम अम्बर , प्रियवर डॉ.राकेश सक्सेना तथा आदरणीया डॉ. सुनीता सक्सेना के करकमलों और मंच के तत्वावधान में महाकाव्य तपस्वी बुद्ध का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। मैं हृदय की गहराइयों से उन सभी का आभारी हूँ , जिनसे किसी भी रूप में मुझे यह सौभाग्य हासिल हुआ।
मई 2018 में मेरे पुत्र श्री भारत स्वरूप राजपूत ने मेरा एक साहित्यिक ब्लॉग बनाकर मुझे दिया जिस पर अद्यतन मेरी सभी रचनाएँ प्रेषित और सुरक्षित हो रही हैं। मेरे संदर्भित ब्लॉग का पता है:
www.hinddhanush.blogspot.in
उक्त ब्लॉग पर प्रेषित की गई रचनाओं का विवरण निम्नवत है:
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माह 2018 2019
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जनवरी ---- 26
फरवरी ---- 27
मार्च ---- 15
अप्रैल ---- 37
मई 27 40
जून 22 25
जुलाई 68 48
अगस्त 27 35
सितंबर 16 33
अक्टूबर 10 32
नवम्बर 20 29
दिसम्बर 35 40
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योग 225 387
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बहुविधा तूलिका मंच के संस्थापक तथा पटल के प्रशासक डॉ. राकेश सक्सेना जी ने संभवतः 16 अक्टूबर 2018 को मंच की स्थापना की, जो अद्यतन मंच के समस्त रचनाकारों के सहयोग और सेवाभावी योगदान से निरन्तर एक अनुशासन की कोमल रेशमी रज्जू से बंधा हुआ चल रहा है। मैं किसी मंच - प्रतिभागी के महत्व को
कमतर नहीं आँक सकता। मुझे यह ख्याल नहीं आ रहा कि कब मुझे इस मंच से जुड़ने का सौभाग्य प्रियवर डॉ. राकेश सक्सेना के द्वारा प्राप्त हुआ। वैसे प्रदेश के राजकीय उच्च शिक्षा विभाग में सेवारत होने के कारण हम लोग पहले से ही सुपरिचित थे। देश के विभिन्न साहित्यिक औऱ सामाजिक मंचों पर मेरी रचनाओं से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे इस मंच से जोड़ना उचित समझा। तब से आज आज तक मेरी यह साहित्य यात्रा अनवरत प्रवाहित हो रही है।इसके लिए मंच के समस्त सुधी समीक्षकों ,सरंक्षक डॉ. राम सेवक शर्मा 'अधीर 'जी, के साथ - साथ मंच के समस्त श्रध्देय अग्रज और आदरणीय अनुज /अनुजाओं , समवयस्क मित्रों का कृतज्ञ हूँ कि जिनके निर्देशन मैं आज भी सीख रहा हूँ; अपने को विद्यार्थी ही मानता हूं। इस मंच को अपना काव्य -गुरु मानने में भी मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। आभार व्यक्त करने के लिए नामों का गिनना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह सूची इतनी लंबी होगी कि भूलवश नाम न लिखने पर उन्हें तो अच्छा नहीं लगेगा, मुझे भी अन्याय ही अनुभव होगा।
इसी स्थान पर मुझे यह कहने में भी कोई आपत्ति नहीं है कि यों तो देश में हजारों साहित्यिक मंच होंगे किन्तु इतना अनुशासित , व्यवस्थित और ईमानदार मंच शायद ही कोई हो। फ़ोटो , वीडियो और ओडियो नहीं भेजने का कठोर नियम नारियल की तरह से बाहर से कड़ा और भीतर से दुग्धवत निर्मल औऱ सनीर है। अन्यथा इस पर कितना कूड़ा -कचरा गिराया जाता , इसकी कोई सीमा नहीं है।इसका अर्थ यह नहीं लिया जाए कि मैं चित्र आदि को कूड़ा -कचरा समझता हूँ ।उनका भी अपना महत्व है , लेकिन एक सीमा तक ही वह सुगन्ध
देता है। उसकी अतिशयता दुर्गंध ही छोड़ती है। चित्र तो हमारी अपनी महत्वाकांक्षी भावना के प्रतिरूप हैं। दूसरा उन्हें कितना महत्व देता है , उसका मूल्यांकन इस पर भी निर्भर करता है । इसलिए इस मंच का सौंदर्य और सुरुचि इसी में निहित है।
लेख के विस्तार की अतिशयता को दृष्टिगत करते हुए इतना ही कहना चाहता हूं कि साहित्य की सेवा , मातृभाषा , जननी और जन्मभूमि की सेवा ही मेरा कर्म है , धर्म है और इसी में मेरा अपना मर्म भी है।
वर्ष 2019 की इस सांध्य वेला में माँ सरस्वती से मेरी यही प्रार्थना है कि आजन्म इसी प्रकार माँ भारती की
सेवा में तन मन और धन से लगा रहूँ।
💐💐 जाने वाले वर्ष 2019 को भावभीनी विदाई।
आने वाले 2020 का हृदय की गहराइयों से स्वागत
और आप सभी को बहुत -बहुत शुभकामनाएं और बधाई .......
💐 शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
31.12.2019
www.hinddhanush.blogspot.in
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