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काफ़िया - इया
रदीफ़ - नहीं
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दुःख भरी आँखों का आँसू पिया नहीं।
आदमी की देह है पर जिया नहीं।।
वेशभूषा रेशमी हीरे जड़ें हैं,
चाक दामन आपने सिया नहीं।
छप रहा अखबार में दानी बड़ा है,
पर किसी भिक्षुक को कुछ दिया नहीं।
लूटता है दान - फल संक्रांति के,
नेपथ्य के पीछे कभी कुछ किया नहीं।
दौड़ता मष्तिष्क इक रोबोट जैसा,
वक्ष के भीतर 'शुभम' हिया नहीं।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
01.12.2019★7.45अपराह्न।
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