मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

कविता - कामिनी [ अतुकान्तिका ]

    

साहित्य में
हित भाव है ,
सद भाव है,
सम भाव है,
पर 
साहित्य के
 स्वाध्याय का
कितने जनों को
चाव है ?
यह साहित्य है
जो भरता 
हृदय के घाव है।

साहित्य की वाणी
कल्याणी सदा ,
सदा शुभदा,
प्रकाशनी आभा 
सुप्रभात की प्रतिभा।

वाणी 
माँ  शारदा की,
गूँजती वीणा,
करती निवारित
अहर्निश
मनुज की पीड़ा,
कवि -लेखकों की
शब्द की क्रीड़ा,
तनिक भी
नहीं उमड़े
मनुज मन व्रीड़ा।

पावनी
मनभावनी,
ज्यों बूँद 
पावस -सावनी,
सुहासिनी
सुभाषिणी,
कविता -कामिनी
जन - हृदय की
वाहिनी!

कोमल भावमय ,
रस , छन्द ,लय,
गति तालमय शृंगार,
सहृदय में 
सुप्रवेश का आधार।

लहराती
महकती
मचलती चलती
गंगा -धार सी,
उद्धार- सी,
स्नात -सी करती,
छन्द के बंध में,
भुजबंध -सी
सुहास -सी झरती,
मौन ही मौन
शब्दों में चहकती 
कविता -कामिनी।

'शुभम ' जीवन का
शुभ -  शृंगार,
सु -आधार,
मेरी आत्मा का
विकसित विस्तार,
मेरी प्रिय
कविता -कामिनी।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
❤ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

18.12.2019●7.00 अपराह्न।

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