साहित्य में
हित भाव है ,
सद भाव है,
सम भाव है,
पर
साहित्य के
स्वाध्याय का
कितने जनों को
चाव है ?
यह साहित्य है
जो भरता
हृदय के घाव है।
साहित्य की वाणी
कल्याणी सदा ,
सदा शुभदा,
प्रकाशनी आभा
सुप्रभात की प्रतिभा।
वाणी
माँ शारदा की,
गूँजती वीणा,
करती निवारित
अहर्निश
मनुज की पीड़ा,
कवि -लेखकों की
शब्द की क्रीड़ा,
तनिक भी
नहीं उमड़े
मनुज मन व्रीड़ा।
पावनी
मनभावनी,
ज्यों बूँद
पावस -सावनी,
सुहासिनी
सुभाषिणी,
कविता -कामिनी
जन - हृदय की
वाहिनी!
कोमल भावमय ,
रस , छन्द ,लय,
गति तालमय शृंगार,
सहृदय में
सुप्रवेश का आधार।
लहराती
महकती
मचलती चलती
गंगा -धार सी,
उद्धार- सी,
स्नात -सी करती,
छन्द के बंध में,
भुजबंध -सी
सुहास -सी झरती,
मौन ही मौन
शब्दों में चहकती
कविता -कामिनी।
'शुभम ' जीवन का
शुभ - शृंगार,
सु -आधार,
मेरी आत्मा का
विकसित विस्तार,
मेरी प्रिय
कविता -कामिनी।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
❤ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
18.12.2019●7.00 अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें