बुधवार, 25 दिसंबर 2019

देश हमारा धर्म है! [ कुण्डलिया ]


 कुत्ता    भौंका     एक  जब ,
हुआ     गली       में    शोर।
भौं भौं   भौं     मचने   लगी,
हुई         भयावह      भोर।।
हुई        भयावह        भोर,
सभी    क्यों  भौंक   रहे हैं।
अनजाने ,        की      राह ,
कुकर    क्यों रोक   रहे  हैं।।
'शुभम '    न  तुलसी -  कुंज,
उग      रहे       कूकरमुत्ता।
भौंके             कुत्ते      खूब,
प्रथम  जब  भौंका कुत्ता।।1।

चाटा      जिसने    रक्त  ही,
उसे     रक्त      की     चाह।
यही       धर्म   की    शान है ,
होकर               बेपरवाह??
होकर                 बेपरवाह,
हृदय   से    दया   बिसारी।
मानवता     का        त्याग,
भले    हो     अपनी   ख्वारी।।
'शुभम'      सुलगती    आग ,
दनुज    ने   मानव   काटा !
लगी        लहू      की   चाट,
साँप    ने     लोहू    चाटा।।2।

देश -   संपदा    दहन   कर,
जो   रहता     इस       देश।
नहीं     नागरिक   देश का,
जन्मा   ज्यों    पशु - वेश।।
जन्मा    ज्यों   पशु  - वेश ,
न    मानव  ही  कहलाता।
रक्त  -    पिपासा      शेष ,
हिंस्र    पशु  ही  बन जाता।।
'शुभम '       देह   नर    रूप,
आम     जन  की वह विपदा।
कीड़ा         क्लीव      कपूत ,
न    जाने   देश - संपदा ।।3।

पले      सपोले    डस  रहे ,
इनसे        रहो        सचेत।
खाते  -   पीते    देश    का,
नहीं     देश      से     हेत।।
नहीं     देश      से      हेत,
छेद     पात्रों    में    करते।
खाते      हैं     जिस    पात्र,
दूसरों     के    हित   मरते।।
'शुभम '   ले     रहे   स्वाद,
सदा   रस में    विष  घोले।
त्याग     मनुज    का   रूप,
बाँह    में  पले    सपोले।।4।

देश       हमारा     धर्म    है ,
देश        हमारा         कर्म।
अन्न   दूध    फल    देश  के,
देश         हमारा        मर्म।।
देश         हमारा       मर्म,
यही     अस्तित्व     हमारा।
पोषक        सदा     सुनीति,
विमल     सुरसरिता   धारा।
'शुभम '      सुदृढ़     क़ानून,
है      नहीं    पक्ष    लवलेश।
राम     कृष्ण     की   भूमि,
यह    प्यारा    भारत देश।।5।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

22.12.2019■3.30 अपराह्न।

www.hinddhanush.blogspot.in

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