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बहुत समय का फेर है।
कूकर गली का शेर है।।
ये भी कोई है मसला,
फूलों सँग फलता बेर है।
जिसे खून का यहाँ नशा,
वही आजकल शेर है।
दिखता है तन से वो इन्सां,
भेड़ों का फिरता ढेर है।
नेता, जनता से हैं चिपके,
केर के सँग ज्यों बेर है।
गदहे को दे रहे पंजीरी,
कितना बड़ा अंधेर है।
'शुभम' दर्द में हँसते हम,
समय- समय का फेर है।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
💎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
29.12.2019 ●1.30 अपराह्न।
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