बुधवार, 25 दिसंबर 2019

ग़ज़ल


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        काफ़िया -   'आर
        रदीफ़ -  स्वेच्छिक
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कलम    है,  कोई   तलवार  नहीं है।
तूलिका है, कोई  हथियार नहीं है।।

अंदाज़   नहीं है, तुझे असर इसका,
शांत   रहती  है,    इज़हार  नहीं है।

जो  कह दिया है ,  अमर   है वाणी,
रद्दी  में बिके , वह अख़बार नहीं है।

अदीब     की आवाज रोक सके कोई,
संगेमरमर  की  वह   दीवार  नहीं है।

अपनी   ही  पतवार  से खेता किश्ती,
'शुभम'की राह में  वह आसार नहीं है।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🛣 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

24.12.2019 ●6.45 अपराह्न।

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