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काफ़िया - 'आर
रदीफ़ - स्वेच्छिक
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कलम है, कोई तलवार नहीं है।
तूलिका है, कोई हथियार नहीं है।।
अंदाज़ नहीं है, तुझे असर इसका,
शांत रहती है, इज़हार नहीं है।
जो कह दिया है , अमर है वाणी,
रद्दी में बिके , वह अख़बार नहीं है।
अदीब की आवाज रोक सके कोई,
संगेमरमर की वह दीवार नहीं है।
अपनी ही पतवार से खेता किश्ती,
'शुभम'की राह में वह आसार नहीं है।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🛣 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
24.12.2019 ●6.45 अपराह्न।
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