सोमवार, 13 जनवरी 2020

हम पतीला हैं [अतुकान्तिका]



सबको
 चाहिए सम्मान
अन्य  का
अपमान कर,
छोटी लकीर के आगे
एक और बड़ी
लकीर खींचकर,
सहज नहीं होता
ऐसा,
जो मन में 
चाहता हो जैसा,
आदमी 
अपनी ही पीठ
 थपथपाकर
गौरवशाली नहीं होता।

वर्णों, वादों,
नापाक इरादों में
बाँटकर
स्वयं को
अपने को
महान कहते हो ?
खण्ड -खण्ड होकर
संतरे की फाँकों को
अपनी शान 
कहते हो?

ये छिलके
 उतरते ही 
सब नंगे हैं!
तुम्हारी 
इसी हिमाकत से
देश में
होते नित्य प्रति
दंगे हैं।

' फूट डालो 
और राज करो ,'
-की यह नीति
विरासत में 
जो मिली है!
गोरे अंग्रेजों से,
काले अंग्रेजों  की
जो बदनीयत से
घुली -मिली है।

वे गैरों का ही 
चूसते थे खून,
इन्हें अपनों का ही
खून पीना 
रुचिकर लगता है,
अपने ही घरों में
आग सुलगाकर
सेंकना 
हाथ -पाँव
सुकून देता है।

ये कोई
 और नहीं,
हमारे तुम्हारे
बीच में हैं,
संविधान को 
गरियाने वाले,
पवित्र पन्नों को
जलाने वाले,
इसी कीच में हैं,
देशभक्ति का पट्टा
अपने गले में डालकर
नाच रहे हैं,
आग के परित:,
लकीरों के आगे
लकीरें खिंचतीं
जा रही हैं,
देखकर 
ये दैनिक दृश्य
मानवता भी
शरमा रही है।

वे कह रहे हैं
हमें बड़ा मानो,
अपनी मत तानो,
हमारी पूजा करो ,
हम तुम्हारे 
देवता हैं,
हमें दो,
हमारी पूजा करो,
हम बड़े हैं,
तुम सबसे 
आगे खड़े हैं,
क्योंकि हम 
गोरे हैं ,
हमारा खून लाल है ,
तुम्हारा हरा नीला  है,
तुम सभी चमचे हो,
हम पतीला हैं।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

13.01.2020 ◆12.40 अपराह्न।

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