धरती हरी, गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।
अविरत समय-चक्र चलता है,
मेरा सबल वतन है।।
पावन गंगा , यमुना के सँग,
सरस्वती का संगम।
धानी धान लहरते गेहूँ,
प्रमुदित है जड़ - जंगम।।
चना , मटर , जौ के खेतों ने,
उगला नित कंचन है।
धरती हरी, गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
उत्तर में प्रहरी हिमगिरि है,
दक्षिण हिन्द महासागर।
पूर्व दिशा खाड़ी लहराती,
पश्चिम अतुल अरब सागर।।
माँ के चरणों को पखार कर,
लगा रहा चंदन है।
धरती हरी , गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
हिंदी , बंगला , गुजराती बहु,
भाषा - भाषी देश है।
उड़िया,कन्नड़,मलयालम जो,
बोलें सुखद सँदेश है।।
पंजाबी , उर्दू , कश्मीरी ,
सबका एक गगन है।
धरती हरी , गगन केसरिया
मध्य श्वेत, जन - जन है।।
प्रजातंत्र का एक तिरंगा ,
संसद पर फहराता।
जनगणमन अधिनायक जय का,
गीत एक ही गाता।।
संविधान है एक सभी का,
करता वतन नमन है।
धरती हरी , गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
मिलजुल कर सब रहें देश में,
एकसूत्र मणि - माला।
इक अखंड भारत हो मेरा,
हटें पटल के जाला।।
तब होंगे मजबूत सभी हम,
भारत एक चमन है।
धरती हरी , गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
बेला ,औ' गेंदा , गुलाब की,
महक रही हैं क्यारी।
हिन्दू, मुस्लिम,सिक्ख,इसाई,
सबकी पूजा न्यारी।।
फिर भी इस भारतमाता का,
सबको आलिंगन है।
धरती हरी, गगन केसरिया,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
रक्तवाद तज भक्तवाद में,
सबकी सदा सुरक्षा।
एक - एक एकादश होते ,
'शुभम' सँदेशा अच्छा।।
स्वस्थ,सबल,सानन्द सभी हों,
शत - शत अभिनंदन है।
धरती हरी, गगन केसरिया ,
मध्य श्वेत जन - जन है।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
22.01.2020 ●10.00पूर्वाह्न।
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