शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

नेताजी चंदन घिसें [ दोहा ]


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एक    भगौना    साथ    में -
लेकर         चमचे       चार।
प्रक्षालन  निज   पाप   बहु,
मन  में  किया  विचार।।1।।

गंगाजी      के     घाट   पर ,
चमचों      की     बहु    भीड़।
पेड़ों      पर    पंछी      नहीं ,
छिपे    हुए    निज नीड़।।2।।

नेताजी       चंदन       घिसें ,
चमके        चमचा  - भाल।
हर -  हर     गंगे      बोलते ,
डाल   गले   में    माल ।।3।।

गंगा   -  नीर     नहान    से,
धुलें   न    मन    के    मैल।
तन  की  चमड़ी   धुल  गई,
फिर   चलना   वह   गैल।।4।।

साल- साल  अघ शमन को,
आती            है     संक्रांति।
मौलिक   व्याख्या  पाप की,
करके    मिलती   शांति।।5।।

दक्षिण  दिशि  के अयन से,
उत्तर        लौटे          सूर।
गंगा     में     गोता    लगा,
नेता    खुश   भरपूर।।6।।

खिचड़ी   में  ज्यों    दाल है ,
नेता     का      वह    हाल।
अलग   दिख  रही  कालिमा,
सिर   के    खिचड़ी बाल ।।7।।

ग्रसा    राहु   ने    चाँद   को,
त्यों      नेता        ने      देश।
पूनमवत      सित  देश    में,
काला       नेता -  वेश।।8।।

गंगाजल    में     गिर    गई ,
हाला     की      जो      बूँद।
नीर     हलाहल   हो   गया,
पी   मत   आँखें  मूँद।।9।।

गंगाजल    में     कब   दिखें ,
सुरा - बिंदु         दो  -  चार।
जनता   पीने     को    विवश ,
'शुभम ' जीत  में हार।।10।।

अंधे      चमचे     देश     के ,
गुर्गों       की      गुड़ -  मार।
नेता      कच्चे      कान   के ,
कैसे       हो         उद्धार।।11।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🐋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

15.01.2020 मकर संक्रांति
12.45 अपराह्न।

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