अनउपजाऊ खेत में,
उगते खरपतवार।
पिछड़े हुए समाज में,
त्यों नेता भरमार।।1।।
ऊँचा पेड़ खजूर का,
छाया , फल अति दूर।
राजनीति का रूख भी,
इस गुण से भरपूर।।2।।
भरी फ़सल के खेत में,
मरु तरु का क्या काम?
शिक्षित सफ़ल समाज में,
राजनीति बेकाम।।3।।
नहीं सियासत चाहती ,
शिक्षित हों सब लोग।
पढ़े - लिखे से क्यों मिले,
काजू किशमिश भोग ??4।।
शिक्षा के अभियान का ,
रहो पीटते ढोल।
बाहर बैनर लहरते ,
अंदर ढोलम - पोल ।।5।।
नारों के नाड़े बँधी,
नेताजी की रेल।
धक -धक -धक चलती रहे,
दिखा जमूरे खेल।।6।।
नेताजी आगे चलें ,
पीछे मूर्ख हज़ार।
चमचे , रिश्वतखोर जन,
डाकू, जार, लबार।।7।।
नेताजी को चाहिए ,
लम्बी भारी पूँछ।
बोतल - प्रेमी मिल गए,
ऊँची उनकी मूँछ।।8।।
अनुशासन किस पेड़ की,
चिड़िया का है नाम!
नेताजी अनभिज्ञ हैं ,
भंजन में सरनाम।।9।।
नेताजी की योग्यता ,
मानक - रहित अपार।
छाप अँगूठा सोहता,
मताधिक्य आधार।।10।।
भलमनसाहत छोड़ सब ,
'गुण ' में वे लबरेज़।
सुरा सुंदरी के सहित ,
सुमन सजाई सेज।।11।।
लोकतंत्र में नीति का,
कहीं नहीं है ठौर।
राजनीति मिथ्या कपट ,
नेता ही सिरमौर।।12।।
छल - छलनी से छानकर,
छद्म नियम आधार।
ऊँचे आसन बैठकर ,
करते हैं आभार।।13।।
सुलभ हुए भगवान भी ,
दुर्लभ मंत्री आज।
गुर्गा जी बाहर खड़े ,
रिश्वत से सब काज।।14।।
पारदर्शिता का करें ,
नित नेता गुणगान।
चमचा जी के हाथ से,
बढ़े बैंक धन - मान।।15।।
सेवा के ही नाम पर ,
मेवा का आहार।
रसवत लोहू पी रहे,
चमचों का आभार।।16।।
अगर समस्या दूर हों,
क्या नेता का काम ?
जन्म उन्हें देते रहो,
मिले तभी आराम।।17।।
जनक समस्या के सदा ,
चमचा नेताराम।
अमर सियासत तब रहे,
खिले लालिमा चाम।।18।।
बने विधायक पुत्र मम ,
नाती पोते देख।
मत वाली पक्की फ़सल,
मौका चूक न पेख।।19।।
वंशवाद उसको कहाँ,
जिसे नहीं औलाद।
घोषित उसने कर दिया ,
अपने को फौलाद।।20।।
नेता - कथा अनन्त है ,
सोलह दूनी चार।
'शुभम' सियासत - धार में ,
हार , हार पुनि हार।।21।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
05.01.2020 ◆2.00अपराह्न।
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