बुधवार, 8 जनवरी 2020

सोलह दूनी चार [ दोहा ]



अनउपजाऊ       खेत      में,
उगते               खरपतवार।
पिछड़े    हुए      समाज   में,
त्यों      नेता    भरमार।।1।।

ऊँचा     पेड़      खजूर     का,
 छाया  ,    फल    अति    दूर। 
राजनीति     का     रूख  भी,
इस    गुण     से  भरपूर।।2।।

भरी    फ़सल    के  खेत  में,
मरु   तरु   का  क्या   काम?
शिक्षित  सफ़ल   समाज  में,
राजनीति          बेकाम।।3।।

नहीं     सियासत      चाहती ,
शिक्षित  हों      सब    लोग।
पढ़े   - लिखे    से क्यों   मिले,
काजू   किशमिश  भोग  ??4।।

शिक्षा    के    अभियान   का ,
रहो         पीटते         ढोल।
बाहर        बैनर        लहरते ,
अंदर      ढोलम - पोल ।।5।।

नारों       के    नाड़े      बँधी,
नेताजी           की       रेल।
धक -धक  -धक  चलती रहे,
दिखा      जमूरे   खेल।।6।।

नेताजी        आगे       चलें ,
पीछे        मूर्ख         हज़ार।
चमचे ,   रिश्वतखोर     जन,
डाकू,       जार,   लबार।।7।।

नेताजी          को     चाहिए ,
लम्बी       भारी           पूँछ।
बोतल - प्रेमी    मिल     गए,
ऊँची    उनकी     मूँछ।।8।।

अनुशासन    किस   पेड़   की,
चिड़िया     का     है      नाम!
नेताजी        अनभिज्ञ      हैं ,
भंजन      में     सरनाम।।9।।

नेताजी         की    योग्यता ,
मानक   -   रहित     अपार।
छाप       अँगूठा      सोहता,
मताधिक्य    आधार।।10।।

भलमनसाहत     छोड़  सब ,
'गुण '    में      वे     लबरेज़।
सुरा      सुंदरी   के    सहित ,
सुमन     सजाई  सेज।।11।।

लोकतंत्र    में     नीति   का,
कहीं        नहीं    है      ठौर।
राजनीति    मिथ्या    कपट ,
नेता   ही    सिरमौर।।12।।

छल  -  छलनी  से छानकर,
छद्म       नियम      आधार।
ऊँचे      आसन      बैठकर ,
करते    हैं      आभार।।13।।

सुलभ    हुए    भगवान  भी ,
दुर्लभ       मंत्री         आज।
गुर्गा  जी     बाहर        खड़े ,
रिश्वत  से  सब काज।।14।।

पारदर्शिता      का       करें ,
नित      नेता       गुणगान।
चमचा जी     के   हाथ   से,
बढ़े  बैंक  धन - मान।।15।।

सेवा    के    ही   नाम  पर ,
मेवा         का      आहार।
रसवत    लोहू    पी    रहे,
चमचों   का आभार।।16।।

अगर   समस्या     दूर    हों,
क्या    नेता    का     काम ?
जन्म    उन्हें     देते      रहो,
मिले   तभी   आराम।।17।।

जनक    समस्या   के   सदा ,
चमचा                नेताराम।
अमर     सियासत   तब रहे,
खिले    लालिमा  चाम।।18।।

बने    विधायक    पुत्र मम ,
नाती           पोते       देख।
मत   वाली  पक्की  फ़सल,
मौका   चूक न   पेख।।19।।

वंशवाद    उसको      कहाँ,
जिसे       नहीं       औलाद।
घोषित   उसने  कर    दिया ,
अपने  को   फौलाद।।20।।

 नेता - कथा    अनन्त    है ,
सोलह      दूनी         चार।
'शुभम'   सियासत - धार में ,
हार , हार    पुनि हार।।21।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

05.01.2020 ◆2.00अपराह्न।

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