कुंजन - कुंजन श्याम फिरें,
राधा न मिलीं घन साँझ भई है।
इत जात कहूँ देखी राधा,
अँखियाँ उन्हें हेरत हारि गई हैं।
ललिता , चित्रा, रँगदेवी मिलीं,
सँग श्याम के ढूँढन जाय रई हैं।
बरसाने की गैल तें आय रहीं,
प्रिय श्यामसखी भई स्वेदमई है।।1।।
बिनु देखे तिहारे दुखें अँखियाँ
हमें छोड़ि न जाउ कहूँ प्रिय राधा।
छिन एक न दूरि रहौ राधे ,
तोहे देखे बिना तेरौ श्याम है आधा।।
ढूँढत - ढूँढत हारि गयौ हूँ,
तुम्हें देखत दूरि भई सिग बाधा।।
कनखी दै निहारि रही हैं 'शुभम',
धरि सीसहु श्यामजू सुठि कांधा।।2।।
दधि बेचिबे गोपी चली मग में,
घनश्यामजु औचक आय गए हैं।
मति बेचौ दही ब्रजनारि भली,
तुमकूँ हम सीख सिखाय रये हैं।
अपने- अपने लली लालन कूँ ,
नित खू ब खबाउ बताइ रए हैं।
बलवान बनें घर के सिग बाल,
श्री श्याम सुजान सिखात भए हैं।।3।।
मति चीर धरौ तट पै तन के,
जमुना-जल में धरि चीर नहाऔ।
तुम्हें देखि रये जलदेव सखी,
तनिकौ तौ जनी उनते शरमाऔ।।
कोऊ आवत जात जौ देखै तुम्हें,
तुम्हें लाज न आवैगी नेंक बताऔ ?
खुलौ अम्बर झाँकि रह्यौ जल में,
तुम्हें कैसौ लागैगौ शुभे !समझाऔ।।4।।
दुर्भाव हमारे नहीं मन में ,
नहीं पाप मोरे मन नेंक समाऔ।
मति देह उघारि घुसौ जल में,
अपवित्र करौ मति पाप कमाऔ ।।
सचीर निशंक नहान करौ,
अशील कुशीलनु कूँ न लुभाऔ ।
श्रीश्याम कहें समुझाय 'शुभम',
समझौ इक बेर में यूँ समझाऔ।।5।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
07.01.2020◆9.15 अपराह्न।
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