बीत गई बातों का क्या ।
अब रिश्ते- नातों का क्या।।
जीवन की पगडंडी पर,
बिन बारिश छातों का क्या।
दिन जब उजले - उजले हों,
बिना चाँद रातों का क्या ।
दर्द की दौलत पास मेरे,
बंद पड़े खातों का क्या ।
गम के दिन गम की रातें,
सोच वृथा बातों का क्या।
चलते ही रहना मंज़िल,
घातों - प्रतिघातों का क्या।
'शुभम'नियति शह का जीवन,
छोटी - सी मातों का क्या।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '
18.01.2020◆8.45अपराह्न।
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