बुधवार, 22 जनवरी 2020

ग़ज़ल



बीत    गई   बातों   का  क्या ।
अब  रिश्ते- नातों  का   क्या।।

जीवन      की    पगडंडी   पर,
बिन बारिश  छातों  का  क्या।

दिन   जब  उजले - उजले हों,
बिना   चाँद   रातों  का क्या ।

दर्द   की   दौलत   पास   मेरे,
बंद   पड़े    खातों   का क्या ।

गम  के   दिन   गम  की  रातें,
सोच     वृथा   बातों  का क्या।

चलते      ही    रहना   मंज़िल,
घातों  - प्रतिघातों   का  क्या।

'शुभम'नियति शह का जीवन,
छोटी -  सी   मातों  का   क्या।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

18.01.2020◆8.45अपराह्न।

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