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नदिया
नदिया मेरा नाम है ,
देना मेरा काम।
न दिया न दिया कह रहे,
करते सब बदनाम।।
करते सब बदनाम,
दे रही निशि दिन पानी।
करूँ पिपासा शांत,
स्नान करते सब प्रानी।।
सिंचित करती खेत,
खिला देती वन - बगिया।
'शुभम' न समझें बात,
सदा हितकारी नदिया।।
बादल
बादल सब कहते मुझे ,
रहता दल के साथ।
पावस ऋतु में बरसता ,
झुका - झुका कर माथ।।
झुका - झुका कर माथ,
भरे घर , खेत, पनाले।
गली , सड़क , मैदान ,
नालियाँ, झरने , नाले।।
जन - जन हो खुशहाल,
मोर,पिक ,चातक ,गलगल।
'शुभम' धान या पान,
सभी कहते आ बादल।।
पानी
पानी की महिमा बड़ी,
नहीं जानते लोग।
जीवन भी कहते मुझे ,
कर अनुचित उपभोग।।
कर अनुचित उपभोग,
बहाते नाला - नाली।
अज्ञानी जड़ लोग ,
देश में बढ़े कुचाली।।
जब न रहेगा नीर,
मिटें नर, राजा, रानी।
'शुभम' न मानी बात ,
मिटा देगा जन पानी।।
सागर
सागर पीता गरल ही ,
कहते सागर नाम।
खारा होकर आप ही ,
देता मेघ ललाम।।
देता मेघ ललाम ,
नदी का कचरा - कूड़ा।
बहा रहा नर आम,
देह मृत मैला बूड़ा।।
करता सरि में शौच ,
गाँव का या नर नागर।
पीता गंगा नीर,
'शुभम' कैसे हो सागर।।
हिमालय
हिम का आलय शुद्ध मैं,
हिमगिरि मेरा नाम।
पावन - प्रहरी देश का ,
पर्वतराज ललाम।।
पर्वतराज ललाम,
स्रवित नित यमुना - गंगा।
धन्य हुई नर जाति,
अरब सागर सह बंगा।।
रहते - शिव कैलास,
मिलाते शिव - गौरी लय।
'शुभम' सरित निधि स्रोत,
कहें सब हिम का आलय।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
💦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
11.01.2020 ◆3.30 अपराह्न।
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