शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

कम्बल बनाम सम्बल [ बालगीत ]


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मुझको   कहते हैं सब कमबल।
मेरा    ही   लेते   हैं   सम्बल।।

जाड़े  में   जब   शीत  सताता।
ठिठुरा  तन कुल्फ़ी बन जाता।
तब   मैं  ही   दे  पाता  हूँ  हल।
मुझको   कहते हैं सब कमबल।

ओढ़े    या कि  बिछा  ले कोई।
तान  शीश  तक  मुन्नी   सोई।
मुझे  नहीं आता  है छल -बल।
मुझको   कहते हैं सब कमबल।

बड़ी   बहन  है   गरम  रजाई।
मोटी    थुलथुल ज्यों हलवाई।
कहती    मुझको तू आगे चल।
मुझको  कहते हैं सब कमबल।

गद्दे   पर   जब  मुझे  बिछाया।
नीचे        से   गरमी   दे   पाया।
मुझे न आता कहना कल कल।
मुझको   कहते हैं सब कमबल।

कहना   छोड़ो   मुझको  कम्बल।
'शुभम'  नाम रख दो मम सम्बल।
इतना    भी  मैं  रहा  नहीं खल।
मुझको    कहते    हैं सब कमबल।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

15.01.2020 मकर संक्रांति
5.30 अपराह्न।

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