जन्म हुआ जनवरी माह में,
एक जनवरी जब आई ।
फर फ र फिरती फिरे फरवरी,
माघ मास की छवि छाई।।
आया मार्च 'मार्च' करती मैं,
ऋतु वसंत की ओर बढ़ी।
यौवन में इतराती डोलूँ,
मादकता मम बढ़ी -चढ़ी।।
आया जब अप्रैल माह तो,
इठलाती बल खाती मैं।
पीली सरसों देख खेत में,
महकी औ' महकाती मैं।।
आई मई बढ़ी मैं आगे,
मौसम भी गरमाया है।
जून माह की तपन झेलती,
छाया माँगे छाया है।।
आधी उम्र बीत जब जाती,
मैं नवोढ़ बन जाती हूँ।
शिशिर हिमन्त वसंत काल में,
मैं यौवन पर आ जाती हूँ।।
माह जुलाई में पावस की,
बूँदों ने मुझको धन्य किया।
और अगस्त माह जब आया,
जन -जन ने अनुमन्य किया।।
बादल बरसे अंकुर उपजे,
हरियाली नव छाई है।
प्रकृति-सुंदरी की छवि अनुपम,
नवल धरा ने पाई है।।
आया मास सितंबर कोई,
सितम नहीं डाला ढाया।
शरद - महोत्स व मना देश में,
माँ दुर्गा को पूजवाया।।
अक्टूबर में दीवाली के भी,
दिये जलाए मनभाए।
शिशिर बढ़ी हेमंत दिशा में,
शीतल हाथ पैर पाए।।
माह नवम्बर का था नम्बर,
ग्यारहवाँ जब शीत बढ़ा।
बुढ़ा गई मैं माह दिसम्बर,
में जाने का ताप चढ़ा।।
पुनर्जन्म ले लिया गया है,
माह 'जन्म वरी' का आया।
एक जनवरी जब आई तो,
मैंने जन्म पुनः पाया।।
इसी तरह हर साल जन्मती,
जीती और चली जाती।
बचपन, युवा, बुढापा पाती,
पुनर्जन्म लेकर आती।।
💐 शुभमस्तु !💐
✍रचयिता ©
🌾 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
02.01.2020 ◆11.30 पूर्वाह्न।
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