गुरुवार, 30 जनवरी 2020

वसंत [ अतुकान्तिका ] 〰〰〰〰〰〰〰


बस अंत
शीत का,
हेमंत शिशिर की
भीति का,
आगमन है
ऋतुराज 
वसंत का।

सुमन  वासन्ती खिले,
गल गए 
शीतमय सब गिले,
भ्रमर 
पुष्प से मिले,
मकरंद के
लोभ में,
रसना के
सुयोग में,
कभी इस 
फूल पर,
कभी उस
फूल पर।

सांध्य में 
दो भ्रमर,
जा रहे थे उधर,
कमल पुष्पों से भरा,
सरोवर था जिधर,
सूर्यास्त जब हुआ ,
कमल भी  मुद गया,
सुखद पंखड़ियों के मध्य,
भ्रमर युगल
रह गया,
स्वाद मकरंद में
बह गया ,
घुटन भी सह गया,
रात भर 
दलों को काटा नहीं,
उसने डाँटा  नहीं,
क्यों भ्रमर के
नव युगल 
कमल सेज 
सो गया!

इधर 
सूरज जब उगा,
अँधियारा भगा,
होश आया
भ्रमर के युगल को,
सवेरा हो गया,
लज्जित- से उठे,
उड़ गए 
वे उधर,
अन्य सुमन -वृन्त पर,
झूलते भूलते 
रात्रि की कैद को
पी रहे थे
पुनः किसी
पुष्प के शहद को।

ये मादकता
नशा
सब वसंत की
भेंट है,
खुमारी अनौखी
'शुभम 'नेक है।

जड़ -चेतन में 
नई उग रही 
चहक है ,
हर युगल देह की
महकती महक है,
आकर्षण की
अदृष्ट चाहत 
चुहल है,
नव सृजन की
प्रकृति प्रदत्त 
परम पहल है।

मादक परस की
आकांक्षा 
प्रियतम की प्रतीक्षा,
वासन्ती अरुण है,
प्रणय रागिनी
बज रही सब कहीं,
सौंदर्य की वृष्टि का
अनुपम चरण है,
'शुभम' संवरण है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

30.1.2020 ★वसंत पंचमी◆ 10.30पूर्वाह्न।
शीत का,
हेमंत शिशिर की
भीति का,
आगमन है
ऋतुराज 
वसंत का।

सुमन  वासन्ती खिले,
गल गए 
शीतमय सब गिले,
भ्रमर 
पुष्प से मिले,
मकरंद के
लोभ में,
रसना के
सुयोग में,
कभी इस 
फूल पर,
कभी उस
फूल पर।

सांध्य में 
दो भ्रमर,
जा रहे थे उधर,
कमल पुष्पों से भरा,
सरोवर था जिधर,
सूर्यास्त जब हुआ ,
कमल भी  मुद गया,
सुखद पंखड़ियों के मध्य,
भ्रमर युगल
रह गया,
स्वाद मकरंद में
बह गया ,
घुटन भी सह गया,
रात भर 
दलों को काटा नहीं,
उसने डाँटा  नहीं,
क्यों भ्रमर के
नव युगल 
कमल सेज 
सो गया!

इधर 
सूरज जब उगा,
अँधियारा भगा,
होश आया
भ्रमर के युगल को,
सवेरा हो गया,
लज्जित- से उठे,
उड़ गए 
वे उधर,
अन्य सुमन -वृन्त पर,
झूलते भूलते 
रात्रि की कैद को
पी रहे थे
पुनः किसी
पुष्प के शहद को।

ये मादकता
नशा
सब वसंत की
भेंट है,
खुमारी अनौखी
'शुभम 'नेक है।

जड़ -चेतन में 
नई उग रही 
चहक है ,
हर युगल देह की
महकती महक है,
आकर्षण की
अदृष्ट चाहत 
चुहल है,
नव सृजन की
प्रकृति प्रदत्त 
परम पहल है।

मादक परस की
आकांक्षा 
प्रियतम की प्रतीक्षा,
वासन्ती अरुण है,
प्रणय रागिनी
बज रही सब कहीं,
सौंदर्य की वृष्टि का
अनुपम चरण है,
'शुभम' संवरण है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

30.1.2020 ★वसंत पंचमी◆ 10.30पूर्वाह्न।

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